चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जीवनी
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जीवनी
Chakravarti Rajagopala Chari| Biography & Facts
Chakravarti Rajagopala Chari |Summary
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जीवनी , परिवार, शिक्षा, मृत्यु
Sucheta Kriplani Biography
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
★★ जन्म :
10 दिसम्बर 1978, थोरापल्ली, मद्रास
प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश इंडिया
★★★ स्वर्गवास :
25 दिसम्बर 1972, मद्रास
★★★ कार्य: राजनेता, वकील, लेखक, स्वतंत्रता सेनानी, भारत के अंतिम गवर्नर जनरल :
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, लेखक और वकील थे। वह भारत के अंतिम गवर्नर जनरल भी थे। अपने सार्वजनिक जीवन में उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।
भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में एक महत्वपूर्ण नेता के साथ-साथ वो मद्रास प्रेसीडेंसी के प्रमुख, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल, भारत के गृह मंत्री और मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे। उन्होंने एक राजनीतिक दल, स्वतंत्रता पार्टी की स्थापना भी की।
राजाजी के नाम से मशहूर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को देश सेवा में किये गए कार्यों के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
★★★ प्रारंभिक जीवन :
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म मद्रास प्रेसीडेंसी के सालेम जिले के थोरापल्ली गाँव में 10 दिसम्बर 1978 को हुआ था। उनका जन्म एक धार्मिक आएंगर परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम चक्रवर्ती वेंकटआर्यन और माता का नाम सिंगारम्मा था।
बचपन में वह शारीरिक रूप से इतने कमजोर थे कि उनके माता-पिता को ऐसा लगता था कि वो शायद ही ज्यादा समय तक जी पायेंगे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा थोरापल्ली में ही हुई।
जब वो पांच वर्ष के थे तब उनका परिवार होसुर चला गया जहाँ उन्होंने होसुर आर. वी. गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल में दाखिला लिया।
उन्होंने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा सन 1891 में पास की और वर्ष 1894 में बैंगलोर के सेंट्रल कॉलेज से कला में स्नातक हुए। इसके पश्चात उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास में कानून की पढाई के लिए दाखिला लिया और सन 1897 में इस पाठ्यक्रम को पूरा किया।
★★★ स्वाधीनता आन्दोलन :
सन 1900 के आस-पास उन्होंने वकालत प्रारंभ किया जो धीरे-धीरे जम गया। वकालत के दौरान प्रसिद्ध राष्ट्रवादी बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और सालेम नगर पालिका के सदस्य और फिर अध्यक्ष चुने गए।
देश के बहुत सारे बुद्धजीवियों की तरह वह भी भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सदस्य बन गए और धीरे-धीरे इसकी गतिविधियों और आंदोलनों में भाग लेने लगे। उन्होंने कांग्रेस के कलकत्ता (1906) और सूरत (1907) अधिवेसन में भाग लिया। सन 1917 में उन्होंने स्वाधीनता कार्यकर्ता पी. वर्दाराजुलू नायडू के पक्ष में अदालत में दलील दी।
वर्दाराजुलू पर विद्रोह का मुकदमा लगाया गया था।
वह एनी बेसेंट और सी. विजयराघव्चारियर जैसे नेताओं से बहुत प्रभावित थे। जब महात्मा गाँधी स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रीय हुए तब राजगोपालाचारी उनके अनुगामी बन गए।
इसके पश्चात उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और अपनी वकालत छोड़ दी। वर्ष 1921 में उन्हें कांग्रेस कार्य समिति का सदस्य चुना गया और वह कांग्रेस के महामंत्री भी रहे।
सन 1922 में कांग्रेस के गया अधिवेसन में उन्हें एक नयी पहचान मिली।
उन्होंने गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1919 के तहत अग्रेज़ी सरकार के साथ किसी भी सहयोग का विरोध किया और इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल के साथ-साथ राज्यों के विधान परिषद् में प्रवेश का भी विरोध कर नो चेन्जर्स समूह के नेता बन गए।
नो चेन्जर्स ने प्रो चेन्जर्स को पराजित कर दिया जिसके फलस्वरूप मोतीलाल नेहरु और चितरंजन दास जैसे नेताओं ने इस्तीफा दे दिया।
वह 1924-25 के वैकोम सत्याग्रह से भी जुड़े थे। धीरे-धीरे राजगोपालाचारी तमिल नाडु कांग्रेस के प्रमुख नेता बन गए और बाद में तमिलनाडु कांग्रेस समिति के अध्यक्ष भी चुने गए। जब 1930 में गांधीजी ने नमक सत्याग्रह के दौरान दांडी मार्च किया तब राजगोपालाचारी ने भी नागपट्टनम के पास वेदरनयम में नमक कानून तोड़ा जिसके कारण सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया।
गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया ऐक्ट, 1935, के तहत उन्होंने 1937 के चुनावों में भाग लेने के लिए कांग्रेस को सहमत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
1937 के चुनाव के बाद मद्रास प्रेसीडेंसी में राजगोपालाचारी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी। द्वितीय विश्व में भारत को शामिल करने के विरोध में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्हें दिसम्बर 1940 में गिरफ्तार कर एक साल के लिए जेल भेज दिया गया।
उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध किया और मुस्लिम लीग के साथ संवाद की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने विभाजन के मुद्दे पर जिन्नाह और गाँधी के बीच बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1946-47 में वो जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व में अंतरिम सरकार में मंत्री रहे। 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के साथ-साथ बंगाल भी दो हिस्सों में बंट गया। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को भारत के हिस्से वाले पश्चिम बंगाल का प्रथम राज्यपाल बनाया गया।
★★★ भारत के गवर्नर जनरल (1948-50) :
भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल माउंटबेटन के अनुपस्थिति में राजगोपालाचारी 10 नवम्बर से 24 नवम्बर 1947 तक कार्यकारी गवर्नर जनरल रहे और फिर बाद में माउंटबेटन के जाने के बाद जून 1948 से 26 जनवरी 1950 तक गवर्नर जनरल रहे। इस प्रकार राजगोपालाचारी न केवल अंतिम बल्कि प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल भी रहे।★★★ नेहरु सरकार में मंत्री :
सन 1950 में नेहरु ने राजगोपालाचारी को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया जहाँ वो बिना किसी मंत्रालय के मंत्री थे। सरदार पटेल के मृत्यु के पश्चात उन्हें गृह मंत्री बनाया गया जिस पद पर उन्होंने 10 महीने कार्य किया। प्रधानमंत्री नेहरु के साथ बहुत सारे मुद्दों पर मतभेद होने के कारण अंततः उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया और मद्रास चले गए।
इसके पश्चात राजगोपालाचारी लगभग दो साल तक मद्रास के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद उन्होंने कुछ समय के लिए सक्रीय राजनीति से सन्यास ले लिया और लेखन के कार्य में लग गए।
सन 1958 में उन्हें उनकी पुस्तक चक्रवर्ती थिरुमगन के लिए तमिल भाषा का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। भारत सरकार ने उन्हें सन 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया।
जनवरी 1957 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया और मुरारी वैद्या और मीनू मसानी के साथ मिलकर सन 1959 में एक नए राजनैतिक दल स्वतंत्रता पार्टी की स्थापना की। बाद में एन. जी. रंगा, के. एम. मुंशी और फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा भी इसमें शामिल हुए।
स्वतंत्रता पार्टी 1962 के लोक सभा चुनाव में 18 और 1967 के लोक सभा चुनाव में 45 सीटें जीतने में कामयाब रही और तमिलनाडु समेत कुछ और राज्यों में प्रभावशाली रही पर सत्तर के दशक में हासिये पर आ गयी।
★★★ निजी जीवन :
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का विवाह वर्ष 1897 में अलामेलु मंगम्मा के साथ संपन्न हुआ। राजगोपालाचारी दंपत्ति के कुल पांच संताने हुईं – तीन पुत्र और दो पुत्रियाँ। मंगम्मा सन 1916 में स्वर्ग सिधार गयीं जिसके बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी अपने बच्चों के पालन-पोषण का भार संभाला।
उनके पुत्र चक्रवर्ती राजगोपालाचारी नरसिम्हन कृष्णागिरी लोकसभा क्षेत्र से सन 1952 से 1962 तक संसद सदस्य रहे। उन्होंने बाद में अपने पिता की आत्मकथा लिखी। राजगोपालाचारी के पुत्री लक्ष्मी का विवाह महात्मा गाँधी के बेटे देवदास गाँधी के साथ हुआ था।
★★★ मृत्यु :
नवम्बर 1972 में उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और 17 दिसम्बर 1972 को उन्हें मद्रास गवर्नमेंट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहाँ उन्होंने 25 दिसम्बर को अंतिम सांसें लीं।
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