पिस्टल दिलाने को पिता के पास नहीं थे पैसे|बेटे ने रचा इतिहास|मनीष नरवाल ने जीता रजत पदक

मनीष नरवाल की कहानी: पिस्टल दिलाने को पिता के पास नहीं थे पैसे, मकान बेचकर दिलाया था तमंचा, बेटे ने रचा इतिहास

पेरिस पैरालंपिक में मनीष नरवाल ने जीता रजत पदक 

मनीष नरवाल की कहानी: पिस्टल दिलाने को पिता के पास नहीं थे पैसे, मकान बेचकर दिलाया था तमंचा, बेटे ने रचा इतिहास |पेरिस पैरालंपिक में मनीष नरवाल ने जीता रजत पदक

परिचय 

मनीष नरवाल, एक ऐसा नाम जो आज भारत के पैरालंपिक खेलों में एक चमकता सितारा है। हरियाणा के छोटे से गांव सोनीपत में जन्मे मनीष ने विकलांगता को अपनी ताकत बना लिया और उसे कभी भी अपनी प्रगति में बाधा नहीं बनने दिया। उनके पिता दिलबाग नरवाल का त्याग और मनीष की मेहनत ने आज उन्हें एक नया मुकाम दिलाया है। मनीष की कहानी संघर्ष, समर्पण, और सफलता की एक अद्वितीय मिसाल है।

शुरुआती जीवन और परिवार का संघर्ष 

मनीष का जन्म 2002 में हरियाणा के सोनीपत जिले में हुआ था। उनके जन्म के समय ही पता चल गया था कि मनीष के दाएं हाथ में कोई विकलांगता है। यह स्थिति उनके परिवार के लिए चिंता का विषय थी, लेकिन उनके पिता दिलबाग नरवाल ने इसे कभी भी मनीष की प्रगति में रुकावट नहीं बनने दिया। दिलबाग, जो खुद एक पहलवान थे, अपने बेटे को एक महान खिलाड़ी बनाने का सपना देखते थे।


मनीष के पिता दिलबाग ने अपने बेटे की खेल में रुचि को देखते हुए उसे निशानेबाजी में प्रशिक्षित करने का फैसला किया। लेकिन उनके पास पिस्टल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। निशानेबाजी एक महंगा खेल है, जहां उपकरण और प्रशिक्षण दोनों ही खर्चीले होते हैं। दिलबाग ने अपने परिवार के सपने को साकार करने के लिए बड़ा फैसला लिया। उन्होंने अपने मकान को बेचकर मनीष के लिए पिस्टल खरीदी।

यह निर्णय परिवार के लिए बहुत कठिन था, लेकिन दिलबाग ने इसे अपने बेटे के भविष्य के लिए आवश्यक समझा। इस निर्णय ने मनीष की जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया। मनीष को जब इस बलिदान का पता चला, तो उन्होंने इसे अपना सबसे बड़ा प्रेरणा स्रोत बनाया और दिन-रात मेहनत करने का संकल्प लिया।

कठिन प्रशिक्षण और पहली सफलता

उनकी पहली बड़ी सफलता तब मिली जब उन्होंने 2018 में एशियाई पैरालंपिक खेलों में गोल्ड मेडल जीता।

मनीष ने पैरालंपिक के अलावा 2022 एशियाई पैरा गेम्स में 10 मीटर एयर पिस्टल में कांस्य पदक जीता है। उन्हें 2020 में अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया था। 2021 में मनीष को खेल रत्न अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।

अवनि लेखरा के बाद भारत के एक और स्टार शूटर मनीष नरवाल ने इतिहास रच दिया है। उन्होंने पुरुषों की 10 मीटर एयर पिस्टल एसएच1 स्पर्धा में भारत के लिए रजत पदक जीता है। उन्होंने अपने लगातार दूसरे पैरालंपिक में पदक पर निशाना साधा है। इससे पहले टोक्यो पैरालंपिक में मनीष ने 50 मीटर पिस्टल एसएच1 मिश्रित स्पर्धा में स्वर्ण जीता था।

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पैरालंपिक 2020: जब मनीष ने रचा इतिहास 

2020 के टोक्यो पैरालंपिक में मनीष नरवाल ने वह कर दिखाया, जो उन्होंने और उनके परिवार ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। उन्होंने 50 मीटर पिस्टल इवेंट में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। मनीष की यह जीत न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय बनी।

यहां तक पहुंचने के लिए मनीष ने कई कठिनाइयों का सामना किया था। उनकी विकलांगता और आर्थिक चुनौतियों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनके पिता का बलिदान और उनकी कड़ी मेहनत ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया। उनकी जीत ने यह साबित कर दिया कि अगर मेहनत और समर्पण हो, तो कोई भी कठिनाई आपको अपने लक्ष्य से दूर नहीं कर सकती।



मनीष नरवाल की कहानी सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं, बल्कि एक बेटे और उसके पिता के संघर्ष की है। यह कहानी इस बात की गवाह है कि कैसे एक पिता का त्याग और एक बेटे की मेहनत दुनिया में चमत्कार कर सकती है। मनीष ने साबित किया कि विकलांगता कभी भी आपकी पहचान को सीमित नहीं कर सकती, अगर आपके पास आत्मविश्वास और समर्पण हो।
मनीष आज उन लाखों युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं, जो अपने जीवन में किसी न किसी कठिनाई का सामना कर रहे हैं। उन्होंने यह दिखा दिया है कि कठिनाइयों का सामना करने के लिए दृढ़ संकल्प और मेहनत ही सबसे बड़ा हथियार है।

निष्कर्ष

मनीष नरवाल की यह कहानी न केवल खेल प्रेमियों के लिए, बल्कि उन सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है जो जीवन में किसी भी चुनौती का सामना कर रहे हैं। मनीष ने दिखाया कि कैसे एक छोटे से गांव का लड़का, जिसकी शुरुआत बहुत साधारण थी, आज दुनिया के मंच पर चमकता सितारा बन गया है। 

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उनके पिता का बलिदान और उनका संघर्ष हमेशा याद रखा जाएगा। मनीष की इस सफलता ने उनके परिवार और देश को गर्व से भर दिया है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि असली जीत वही है जो कठिनाइयों के बावजूद हासिल की जाए।

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