प्रीति पाल की कहानी: शारीरिक और आर्थिक समस्याओं से जूझने के बावजूद नहीं मानी हार, अब पेरिस में लहराया तिरंगा
प्रीति पाल का जीवन संघर्ष, साहस और सफलता की कहानी है। जहां उन्होंने शारीरिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना किया, वहीं उनका अटूट हौसला उन्हें पेरिस 2024 में भारत का नाम रोशन करने तक ले गया।
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जन्मीं प्रीति किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं। जन्म के छह दिन बाद ही उनके शरीर के निचले हिस्से पर प्लास्टर बांधना पड़ा था। कमजोर और असामान्य पैर की स्थिति के कारण उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
पेरिस पैरालंपिक का दूसरा दिन भारत के लिए शानदार रहा। भारतीय एथलीट्स ने कुल चार पदक अपने नाम किए। इनमें एक स्वर्ण, एक रजत और दो कांस्य शामिल हैं। प्रीति पाल ने ट्रैक और फील्ड में भारत के लिए पहला पदक जीतकर इतिहास रच दिया।
शारीरिक चुनौतियां और संघर्ष:
प्रीति पाल का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था, लेकिन शुरुआती दिनों से ही उन्होंने कई शारीरिक समस्याओं का सामना किया। बावजूद इसके, उनके अंदर आत्मविश्वास और खेल के प्रति जुनून कभी कम नहीं हुआ। उनकी फिटनेस की समस्याएं उनके लिए एक बड़ी चुनौती थीं, पर उन्होंने लगातार मेहनत और दृढ़ निश्चय से इन समस्याओं को पार किया।
यह इन खेलों में ट्रैक इवेंट में पहला पदक है। प्रीति के लिए इस मुकाम तक पहुंचना आसान नहीं रहा। उन्होंने छह साल पहले सोशल मीडिया पर पैरालंपिक खेलों की वीडियो देखकर दौड़ना शुरू किया था। आज उनकी मेहनत रंग लाई है।
जन्म के छह दिन बाद हुई दिक्कत
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जन्मीं प्रीति किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं। जन्म के छह दिन बाद ही उनके शरीर के निचले हिस्से पर प्लास्टर बांधना पड़ा था। कमजोर और असामान्य पैर की स्थिति के कारण उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कई सालों तक इलाज के बाद भी कुछ खास असर नहीं पड़ा।
प्रीति को पांच साल की उम्र में कैलिपर पहनना पड़ा जिसका आठ सालों तक उन्होंने उपयोग किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ लोगों ने उनके चलने पर शंका जताई लेकिन प्रीति ने कभी हार नहीं मानी और संघर्षों के साथ यहां तक पहुंची।
आर्थिक समस्याओं के बीच खेल की तैयारी :
प्रीति का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, लेकिन उनके माता-पिता ने उनकी खेल प्रतिभा को पहचानते हुए उनके सपनों का साथ दिया। बिना किसी स्पॉन्सरशिप या सुविधाओं के बावजूद, प्रीति ने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी ट्रेनिंग जारी रखी। सरकारी योजनाओं और कुछ संगठनों की मदद से उन्होंने अपनी ट्रेनिंग का खर्च उठाया।
सोशल मीडिया ने बदला जीवन
प्रीति का जीवन जीने का नजरिया तब बदला जब उन्होंने 17 की उम्र में सोशल मीडिया पर पैरालंपिक खेलों की वीडियो देखीं। इनसे प्रेरित होकर उन्हें अहसास हुआ कि वह भी अपने सपनों को पूरा कर सकती हैं। छोटी उम्र में उन्होंने स्टेडियम में अभ्यास करना शुरू किया।
हालांकि, आर्थिक तंगी के कारण उन्हें आने-जाने में काफी संघर्ष करना पड़ा था। उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उनकी मुलाकात पैरालंपिक एथलीट फातिमा खातून से हुई। वो फातिमा ही थीं जिन्होंने प्रीति को पैरा एथलेटिक्स से परिचित कराया।
फातिमा के समर्थन से, प्रीति ने 2018 में स्टेट पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लिया। इसके अलावा उन्होंने कई राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भी भाग लिया। उनके प्रयासों का फल तब मिला जब उन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर दोनों स्प्रिंट में चौथा स्थान हासिल करते हुए एशियाई पैरा खेलों 2022 के लिए क्वालिफाई किया।
पेरिस में जीता अपना पहला पैरालंपिक पदक
प्रीति भले ही एशियन पैरा खेलों में कोई पदक नहीं जीत पाईं लेकिन वह पैरालंपिक खेलों के लिए खुद को प्रोत्साहित करती रहीं। वह कोच गजेन्द्र सिंह से प्रशिक्षण लेने के लिए दिल्ली चली गईं जहां उन्होंने अपनी दौड़ने की तकनीक को निखारने और अपने प्रदर्शन में महत्वपूर्ण सुधार करने पर ध्यान केंद्रित किया।
प्रीति की मेहनत का फल उन्हें 2024 में विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिए चयनित होने पर मिला जहां उन्होंने पेरिस में अपना पहला पैरालंपिक पदक हासिल करने से पहले 100 मीटर और 200 मीटर दोनों स्पर्धाओं में कांस्य पदक जीते।
निष्कर्ष:
प्रीति पाल की कहानी हमें यह सिखाती है कि चुनौतियां चाहे जितनी भी बड़ी हों, अगर मेहनत, समर्पण और आत्मविश्वास से उनका सामना किया जाए, तो सफलता जरूर मिलती है। पेरिस 2024 में उनकी जीत भारत के लाखों युवाओं को प्रेरित करेगी और उनके संघर्ष की कहानी एक उदाहरण बनेगी।
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