सुमित अंतिल की कहानी: सात साल की उम्र में पिता को खोया, हादसे में गंवाया पैर, अब पेरिस पैरालंपिक में जीता सोना
Paris Paralympics 2024 : पेरिस पैरालंपिक में सुमित अतिंल ने स्वर्ण पदक जीतकर नया कीर्तिमान स्थापित किया
सुमित अंतिल की कहानी संघर्ष और साहस की एक प्रेरणादायक मिसाल है। हरियाणा के सोनीपत जिले से ताल्लुक रखने वाले सुमित ने जीवन की कठिनाइयों का डटकर सामना किया। मात्र सात साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया, जिससे उनका जीवन अचानक से बदल गया। पर उनका संघर्ष यहीं नहीं रुका। साल 2015 में, जब सुमित एक मोटरबाइक दुर्घटना का शिकार हुए, तो उन्हें अपने एक पैर को खोना पड़ा।
भारत के स्टार भाला फेंक पैरा एथलीट सुमित अंतिल ने सोमवार को दमदार प्रदर्शन के साथ भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। पेरिस पैरालंपिक में सुमित ने पुरुष भाला फेंक एफ64 वर्ग स्पर्धा में अपने दूसरे प्रयास में 70.59 मीटर के सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ सोना जीता। 26 वर्षीय एथलीट के लिए इस मुकाम तक पहुंचना आसान नहीं रहा। उन्होंने तमाम संघर्षों के बाद एक बार फिर पैरालंपिक में देश का मान बढ़ाया।
यह हादसा उनके जीवन में एक बड़ा झटका था, लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय अपने जीवन को नए सिरे से शुरू किया। खेलों के प्रति उनकी रुचि ने उन्हें पैरालंपिक्स की ओर प्रेरित किया। उनकी लगन और मेहनत का नतीजा यह हुआ कि सुमित ने 2024 पेरिस पैरालंपिक्स में अपने देश के लिए स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने भाला फेंक प्रतियोगिता में 70.59 मीटर का थ्रो कर नया कीर्तिमान स्थापित किया।
दो महीने में घटाया 10-12 किलो वजन
पदक जीतने के बाद सुमित ने कहा- मैंने करीब 10-12 किलो वजन कम किया है। मेरे फिजियो विपिन भाई ने मुझे बताया कि वजन मेरी रीढ़ की हड्डी पर दबाव डाल रहा है। इसलिए, मैंने मिठाई खाना छोड़ दिया, जो मेरी पसंदीदा है और सही खाने पर ध्यान केंद्रित किया।
पदक जीतने के बाद सुमित ने कहा- मैंने करीब 10-12 किलो वजन कम किया है। मेरे फिजियो विपिन भाई ने मुझे बताया कि वजन मेरी रीढ़ की हड्डी पर दबाव डाल रहा है। इसलिए, मैंने मिठाई खाना छोड़ दिया, जो मेरी पसंदीदा है और सही खाने पर ध्यान केंद्रित किया।
सुमित की यह मेहनत बीते दिन रंग लाई जब वह पेरिस में तिरंगा लहराने में कामयाब हुए। इसी के साथ पर पैरालंपिक में खिताब का बचाव करने वाले पहले भारतीय पुरुष और दूसरे भारतीय बने। इससे पहले अवनि लेखरा ने अपने पदक का बचाव किया था। पेरिस से पहले टोक्यो में सुमित ने 68.55 मीटर के सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ स्वर्ण जीता था।
सुमित ने अपने कोच (अरुण कुमार) का भी धन्यवाद किया जिन्होंने हमेशा उनकी जरूरतों को समझा, उनका शेड्यूल बनाने के लिए रात-रात भर जागते रहे और बहुत मेहनत की। उन्होंने कहा कि उनके कोच ने उनसे भी ज्यादा मेहनत की है। सुमित ने कहा- मैंने क्रॉसफिट वर्कआउट, स्प्रिंट करना भी शुरू कर दिया और कड़ी ट्रेनिंग की।
मेरे कोच के साथ दो साल हो गए हैं और वह मेरे लिए बड़े भाई की तरह हैं। वह अच्छी तरह से जानते हैं कि मुझे क्या चाहिए और कब चाहिए। मैंने उन्हें मेरा शेड्यूल बनाने के लिए रात भर जागते देखा है। मेरी टीम ने मेरे लिए बहुत मेहनत की है और मैं उनके साथ होने पर वास्तव में धन्य महसूस करता हूं।
सुमित अंतिल का सफर यह बताता है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें आएं, यदि हौसला और संकल्प मजबूत हो, तो हम किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं। उनके इस ऐतिहासिक स्वर्ण पदक ने न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे देश को गर्व महसूस कराया है।
सुमित की कहानी युवाओं को प्रेरित करने वाली है और यह संदेश देती है कि कोई भी बाधा हमें सफलता की ओर बढ़ने से नहीं रोक सकती।
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