अफगानिस्तान संकट -1979: सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में कब हस्तक्षेप किया ?
1979 में सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया, जिससे अफ़ग़ानिस्तान का संकट शुरू हुआ।सोवियत संघ ने इस हमले का उद्देश्य अफ़ग़ानिस्तान की साम्यवादी सरकार का समर्थन करना था।
सोवियत युद्ध नामक यह युद्ध हुआ। इस युद्ध में सोवियत सेना और अफ़ग़ान मुजाहिदीन लड़ते थे। अमेरिका, पाकिस्तान, चीन, और सऊदी अरब अफ़ग़ान मुजाहिदीनों का समर्थन करते थे।
सोवियत युद्ध अफगानिस्तान में दिसंबर 1979 से फरवरी 1989 के दौरान हुआ था। उस समय सोवियत संघ (अब रूस) की सेना ने अफगान मुजाहिदीन सरकार के खिलाफ जंग लड़ी थी। 1979 में, सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति लियोनिड ब्रेजनेव ने अफगानिस्तान में सेना भेजने का निर्णय लिया।
इस युद्ध से जुड़े कुछ विशिष्ट मुद्दे:
इस युद्ध में लगभग 10 लाख लोग मर गए और उससे कहीं अधिक लोग देश छोड़कर भाग गए।
1987 में सोवियत संघ ने कुछ आंतरिक कारणों से अपने सैनिकों को वापस ले लिया।
15 मई 1988 को सोवियत सैनिक अफ़ग़ानिस्तान से वापस चले गए, और 15 फ़रवरी 1989 को अंतिम सैन्य टुकड़ी भी चली गई।
सोवियत सेना के जाने के बाद भी अफ़ग़ानिस्तान में गृहयुद्ध चलता रहा।
अफगानिस्तान संघर्ष और भारत: अफगानिस्तान संकट 1979
अफगानिस्तान संकट का परिचय
1979 में शुरू हुआ अफ़गानिस्तान संघर्ष, सोवियत संघ का हस्तक्षेप और देश के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण और विचित्र घटनाओं में से एक था। यह एक लंबी अवधि का युद्ध था, जिसमें कई देशों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग लिया, जिससे अफ़ग़ानिस्तान सहित पूरी दुनिया प्रभावित हुई।
हम इस लेख में "अफ़ग़ानिस्तान संघर्ष और भारत" को समझाएंगे। हम जानेंगे कि अफगानिस्तान में क्या हुआ, इसका इतिहास, सोवियत संघ का हस्तक्षेप कब और क्यों हुआ, और भारत की भूमिका क्या थी। हम भी इस संदर्भ में इस विषय को कक्षा बारहवीं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को उपयोगी जानकारी देंगे।
27 दिसंबर 1979 ई. को अफगानिस्तान में क्रांतिकारियों ने राष्ट्रपति हूफी जुल्ला अमीन को पदच्युत करके बारबक करमाल को राष्ट्रपति बनाया। इसी समय अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिए रूसी सेनाएं पहुंच गई। कई वर्षों तक अफगानिस्तान में गृह-युद्ध चलता रहा।
संघ के अनेक प्रयास विफल रहे। अंत में अप्रैल 1988 ई. को सुरक्षा परिषद अफगानिस्तान से रूसी सेनाएं हटाने में सफल रहे।
समस्या: सोवियत अफगानिस्तान की शुरुआत
अफगानिस्तान संकट
1979 में सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान में अपनी सेना भेजी, जिससे अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध की शुरुआत हुई। इस हस्तक्षेप का मूल उद्देश्य अफ़ग़ानिस्तान की साम्यवादी सरकार का समर्थन था, जो देश में राजनीतिक अस्थिरता और मुजाहिदीन विद्रोहियों के बढ़ते प्रभाव से जूझ रहा था।
1970 के दशक के उत्तरार्ध में अफ़ग़ानिस्तान की सरकार को अंदरूनी समस्याओं से गुजरना पड़ा। सोवियत संघ का समर्थन प्राप्त अफ़ग़ानिस्तान की साम्यवादी सरकार इस समय नूर मोहम्मद तराकी के नेतृत्व में थी।
लेकिन तराकी की सरकार देश में व्यापक असंतोष को नियंत्रित करने में असमर्थ रही, जिससे मुजाहिदीन समूहों का जन्म हुआ। साम्यवादी सरकार के खिलाफ लड़ने वाले धार्मिक कट्टरपंथी मुजाहिदीन समूह कहलाते थे।
सोवियत संघ का हस्तक्षेप
दिसंबर 1979 में सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान में सैनिकों को भेजने का फैसला किया। तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति लियोनिड ब्रेजनेव ने यह कार्रवाई की। सोवियत संघ की सरकार ने सोचा कि साम्यवादी शासन को अफ़ग़ानिस्तान में बनाए रखने के लिए सैन्य सहायता चाहिए।
सोवियत सेना ने काबुल, अफगानिस्तान की राजधानी, ले लिया और तराकी की सरकार को हटाकर बाबरक कारमल को प्रधानमंत्री बनाया।
अफगान संघर्ष का विस्तार और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव
सोवियत संघ और अफ़ग़ान युद्ध
सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान में घुसकर देश को गृहयुद्ध में डाल दिया। मुजाहिदीन समूहों ने अफगानिस्तान और सोवियत संघ की सेना के खिलाफ युद्ध शुरू किया। अमेरिका, पाकिस्तान, चीन और सऊदी अरब ने मुजाहिदीनों को समर्थन दिया। यह संघर्ष शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ और पश्चिमी देशों के बीच परोक्ष युद्ध का एक हिस्सा था, इसलिए ये देश मुजाहिदीनों को आर्थिक और सैन्य सहायता दे रहे थे।
यह युद्ध बहुत बुरा था और अफगानिस्तान के बहुत से क्षेत्रों को बर्बाद कर दिया। लाखों अफगानी लोगों को अपने घरों से भागकर शरणार्थी बनना पड़ा जब गांवों और शहरों पर बमबारी हुई। इस युद्ध में लगभग दस लाख लोग मारे गए और इससे भी अधिक बेघर हो गए।
भारत का भूमिका
भारत ने युद्ध के दौरान एक संतुलित नीति अपनाई। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के आंतरिक मामलों में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन उसने अफगानियों को मानवीय सहायता दी। उस समय भारत और सोवियत संघ के बीच गहरे संबंध थे, इसलिए भारत ने सोवियत संघ के अफगानिस्तान में हस्तक्षेप की आलोचना नहीं की।
साथ ही, भारत ने अफगानिस्तान में साम्यवादी सरकार का समर्थन किया क्योंकि यह भारत के हितों के अनुकूल माना जाता था और धार्मिक नहीं था।
भारत ने मुजाहिदीनों को सैन्य या आर्थिक सहायता नहीं दी, जैसा कि अमेरिका और पाकिस्तान ने किया था। भारत ने अफगान लोगों की मानवीय सहायता के लिए दवाइयां, खाना और अन्य आवश्यक वस्तुएं दीं। भारत ने इस पूरे संघर्ष में अपनी कूटनीतिक भूमिका से एक महत्वपूर्ण और स्थिर प्रतिद्वंद्वी बनाए रखा।
समाधान : संघर्ष का अंत और अफगानिस्तान पर प्रभाव
सोवियत सेना की वापसी
1980 के दशक के उत्तरार्ध में सोवियत संघ की आर्थिक और राजनीतिक परेशानियों ने उसे अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाना पड़ा। 1987 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस भेजना शुरू किया। सोवियत सैनिकों की आधिकारिक वापसी 15 मई, 1988 को हुई। 15 फरवरी, 1989 को आखिरी सोवियत सैनिक अफगानिस्तान छोड़ गए।
सोवियत सेना के बाहर निकलने के बाद भी अफगानिस्तान में संघर्ष जारी था। मुजाहिदीन और अफगान सरकार के बीच गृहयुद्ध चलता रहा, जिससे अंततः 1992 में साम्यवादी सरकार गिर गई। इसके बाद 1996 में अफगानिस्तान पर तालिबान का उदय हुआ।
सोवियत संघ का विघटन
सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान में घुसने के बाद बहुत नुकसान उठाया। इस युद्ध ने सोवियत अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाला और आम लोगों में असंतोष पैदा किया। सोवियत संघ 1991 में टूट गया, इसके बाद रूस और अन्य स्वतंत्र राज्य बन गए।
अफगानिस्तान-भारत सम्बन्ध
सोवियत-अफगान युद्ध के बाद भी भारत और अफगानिस्तान के बीच अच्छे संबंध रहे। भारत ने अफगान लोगों को मानवीय सहायता दी और देश को फिर से बनाने में मदद की। अफगानिस्तान में भारत ने स्कूल, अस्पताल, सड़कें और अन्य बुनियादी ढांचा बनाने में मदद की।
भारत ने तालिबान के कब्जे के बाद भी अफगानिस्तान को सहायता दी और उसके लोगों से संबंध बनाए रखे। 2001 में अमेरिका के नेतृत्व में तालिबान सरकार को हटाए जाने के बाद, भारत ने फिर से अफगानिस्तान में अपनी भूमिका बढ़ाई और देश के पुनर्निर्माण में बहुत कुछ किया।
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FAQ
अफगानिस्तान संकट कब हुआ?
अफगानिस्तान संकट की शुरुआत 1979 में हुई थी, जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया और अपनी सेना भेजी। इस संघर्ष को "सोवियत-अफगान युद्ध" के नाम से भी जाना जाता है, जो 1989 तक चला।
सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में कब और क्यों हस्तक्षेप किया?
सोवियत संघ ने दिसंबर 1979 में अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया। इसका मुख्य उद्देश्य अफगानिस्तान की साम्यवादी सरकार का समर्थन करना और देश में राजनीतिक अस्थिरता को नियंत्रित करना था।
सोवियत-अफगान युद्ध के परिणाम क्या थे?
इस युद्ध में लगभग 10 लाख लोग मारे गए और लाखों लोग शरणार्थी बन गए। सोवियत संघ ने 1989 में अपने सैनिकों को वापस बुला लिया, लेकिन इसके बाद भी अफगानिस्तान में गृहयुद्ध जारी रहा। अंततः 1992 में साम्यवादी शासन का पतन हुआ।
भारत की अफगानिस्तान संघर्ष में क्या भूमिका रही?
भारत ने इस संघर्ष में संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। उसने अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन अफगान लोगों की मानवीय सहायता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भी सहायता की।
सोवियत संघ का विघटन कब हुआ?
सोवियत संघ का विघटन 1991 में हुआ। अफगानिस्तान युद्ध और अन्य आंतरिक समस्याओं के कारण सोवियत संघ को टूटने का सामना करना पड़ा, और इसके बाद रूस और अन्य स्वतंत्र राज्यों का गठन हुआ।
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