DRDO और IIT दिल्ली ने मिलकर बनाई हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट : ABHED

DRDO - IIT Delhi ने बनाई हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट "ABHED" 

"DRDO और IIT दिल्ली ने मिलकर बनाई हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट 'ABHED', जो सैनिकों को बेहतरीन सुरक्षा देती है। जानिए इस इनोवेशन के पीछे की कहानी, इसके फायदे, और कैसे यह रक्षा क्षेत्र में क्रांति ला सकती है।"

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर हल्की बुलेट प्रतिरोधी जैकेट बनाई है जिसका नाम ABHED है। दिल्ली में स्थित डीआरडीओ उद्योग अकादमिक उत्कृष्टता केंद्र (DIA-CoE) में ये जैकेट बनाया गया है।

DRDO - IIT Delhi ने बनाई हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट ABHED

भारत की रक्षा हमेशा से नवाचार और तकनीक में अग्रणी रही है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और IIT दिल्ली ने मिलकर 'ABHED' नामक हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट बनाया है, जो इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है। यह हल्की जैकेट भारतीय सैनिकों को अधिक सुरक्षा प्रदान करती है और उनकी गतिशीलता को प्रभावित नहीं करती।

परेशानियाँ: सैनिकों पर बुलेट प्रूफ जैकेट का बोझ

सैनिकों को हर समय अपने जीवन को जोखिम में डालकर देश की रक्षा करनी होती है। जब वे दुश्मन की गोलियों और बमों से घिरते हैं, तो उनकी सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। पुरानी बुलेट प्रूफ जैकेट्स भारी होती हैं, जो सैनिकों को भारी लगता है।

भारी जैकेट्स सैनिकों की गति को धीमी करते हैं, जो उनकी गतिशीलता को कमजोर करता है। इससे उनकी युद्ध क्षमता में कमी आती है, क्योंकि वे न केवल दुश्मन की गोलियों से बचने में असमर्थ होते हैं, बल्कि अधिक ऊर्जा खर्च करते हैं।

Stress: भारी जैकेट्स से युद्ध क्षमता पर असर

एक अध्ययन के अनुसार, सामान्य बुलेट प्रूफ जैकेट्स का वजन लगभग दस से पंद्रह किलो होता है, जो सैनिकों पर और अधिक बोझ डालता है। युद्ध के दौरान, जब सैनिकों को तेजी से स्थानांतरित करना होता है या कठिन भौगोलिक क्षेत्रों में लड़ना होता है, यह बोझ घातक हो सकता है।

सैनिकों को अक्सर जंगलों में दौड़ना, पहाड़ियों पर चढ़ना और विषम परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। इस दौरान उनकी जैकेट्स का भारी वजन उनकी शारीरिक क्षमता और मानसिक स्थिरता पर बुरा असर डालता है। भारी जैकेट्स के कारण सैनिक अपनी सुरक्षा उपकरणों को नहीं पहनते, जिससे उनकी जान का खतरा बढ़ जाता है।

निवारण: DRDO और IIT Delhi की "ABHED" जैकेट

इस समस्या को समझते हुए DRDO और IIT Delhi ने मिलकर 'ABHED' नामक हल्की, टिकाऊ और अत्याधुनिक बुलेट प्रूफ जैकेट बनाया है। यह जैकेट का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह 5 से 7 किलो वजन में हल्की है, जो आम जैकेटों से काफी कम है।

ABHED जैकेट में उन्नत सामग्री का उपयोग किया गया है, जो इसे हल्का और मजबूत बनाते हैं। यह जैकेट बुलेट्स से बचाव करने में पूरी तरह सक्षम है, और इसकी डिजाइन ऐसी है कि सैनिक इसे लंबे समय तक पहनने में कोई समस्या नहीं होगी।

इस जैकेट को बनाने के लिए DRDO और IIT दिल्ली ने कई परीक्षण किए हैं। इस जैकेट की एक विशेषता यह है कि यह हल्की है और उच्चतम सुरक्षा मानकों को पूरा करती है।

DRDO की इतिहास:

DRDO (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) को 1958 में स्थापित किया गया था। इसका मूल लक्ष्य था भारत को रक्षा क्षेत्र में स्वतंत्र बनाना। पिछले दशकों में DRDO ने मिसाइल, रडार और जैविक सुरक्षा प्रणालियों को विकसित किया है।

DRDO ने अपने गठन के बाद से ही भारतीय रक्षा क्षेत्र में नवीनतम स्तर हासिल किया है। इसके अंतर्गत कई परियोजनाओं पर काम हुआ है, जो भारतीय सेना को अग्रणी तकनीक प्रदान करते हैं। भारतीय सेना को अत्याधुनिक बुलेट प्रूफ सुरक्षा प्रदान करने वाली "ABHED" जैकेट भी इसमें महत्वपूर्ण है।

Case Research: "ABHED" का निर्माण और विश्लेषण

DRDO और IIT दिल्ली ने मिलकर इस समस्या को हल करने का बीड़ा उठाया जब भारतीय सेना ने बुलेट प्रूफ जैकेट की जरूरत बताई। दोनों संस्थानों ने एक शोध टीम बनाई, जो उन्नत सामग्री का उपयोग करके एक हल्की लेकिन प्रभावी बुलेट प्रूफ जैकेट बनाया।

परीक्षण और परीक्षण: इस जैकेट ने कई कठिन परिस्थितियों का सामना किया। बुलेट्स और शार्पनेल्स ने उसे कई हथियारों से मारा। परीक्षणों के दौरान, 'ABHED' जैकेट ने सभी सुरक्षा मानकों को पूरा किया, जिससे यह सेना द्वारा मान्यता प्राप्त हो गया।

DRDO और IIT दिल्ली ने मिलकर बनाई हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट : ABHED

'ABHED' के लाभ

हल्का और स्थायी: इसका वजन 5 से 7 किलो है, जो सैनिकों को तेज और गतिशील बनाता है।

अधिकतम सुरक्षा नियम: सैनिकों को बुलेट से बचाने के लिए यह जैकेट उन्नत सामग्रियों से बनी है।

लंबी अवधि का उपयोग: सैनिक इसे लंबे समय तक पहनने में असुविधा नहीं महसूस करेंगे।

Multilayer डिजाइन: इसमें कई स्तरों की सुरक्षा दी गई है, जो बुलेट्स और शार्पनेल्स से प्रभावी रूप से बचाता है।

डीआरडीओ-आईआईटी दिल्ली का योगदान

इस DRDO और IIT दिल्ली की परियोजना ने दिखाया कि भारत में भी अच्छे सुरक्षा उपकरण बनाए जा सकते हैं। "ABHED" जैकेट सैनिकों को सुरक्षित रखती है और देश को रक्षा उद्योग में आत्मनिर्भर बनाने में भी मदद करती है। साथ ही, DRDO और आईआईटी दिल्ली की तकनीकी क्षमता ने इस जैकेट को भारतीय सेना की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया है।

DRDO और IIT दिल्ली द्वारा निर्मित 'ABHED' बुलेट प्रूफ जैकेट भारतीय रक्षा क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण इनोवेशन है। यह जैकेट न केवल सैनिकों की सुरक्षा को बढ़ावा देती है, बल्कि यह उन्हें अधिक तेज़ और गतिशील बनाती है। 'ABHED' जैकेट का निर्माण इस बात का सबूत है कि भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। यह जैकेट भारतीय सेना के लिए सुरक्षा और दक्षता का नया मापदंड स्थापित करेगी।
DRDO और IIT दिल्ली ने मिलकर बनाई हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट : ABHED

डीआरडीओ का पूरा इतिहास: एसएससी परीक्षा की तैयारी के लिए

भारत की रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) भारतीय सरकार की प्रमुख संगठन है, जो रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के लिए जिम्मेदार है। डीआरडीओ की स्थापना के साथ ही इसका उद्देश्य भारत को रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भर बनाना था। 

1. स्थापना और प्रारंभिक समय (1958-1970)

स्थापना

डीआरडीओ की स्थापना 1958 में हुई थी, जब भारतीय सेना के तकनीकी विकास स्थापना (TDE), तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (DTDP) और रक्षा विज्ञान संगठन (DSO) का विलय कर दिया गया। 

इस विलय का उद्देश्य भारत के संसाधनों और विशेषज्ञता को रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में केंद्रित करना था।

प्रारंभिक उद्देश्य:

डीआरडीओ का प्रारंभिक उद्देश्य स्वदेशी रूप से हथियार, सैन्य प्रौद्योगिकी और उपकरणों का विकास करना था ताकि विदेशी आयात पर निर्भरता कम की जा सके।

प्रारंभिक परियोजनाएं:

शुरुआती वर्षों में, डीआरडीओ ने तोपखाने, विस्फोटक और छोटे हथियारों जैसी बुनियादी रक्षा प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित किया। इस चरण के दौरान मोर्टार शेल, मिसाइल प्रणाली और रडार प्रणाली जैसी परियोजनाओं की शुरुआत की गई।

2. विस्तार और विकास (1970-1990)

1970 का दशक: 1970 के दशक में, डीआरडीओ ने अपने दायरे का विस्तार किया। इस दौरान नए प्रयोगशालाओं और अनुसंधान केंद्रों की स्थापना की गई, जो इलेक्ट्रॉनिक्स, रडार, लड़ाकू वाहन और मिसाइलों जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित थे। डीआरडीओ ने भारतीय सशस्त्र बलों के साथ भी सहयोग शुरू किया ताकि उनकी आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से समझा जा सके।

मिसाइल कार्यक्रम की शुरुआत: इस समय के दौरान, डीआरडीओ ने भारत के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) की नींव रखी। यह चरण भारत के मिसाइल सिस्टम विकसित करने के प्रयासों की शुरुआत का प्रतीक था।

1983 - IGMDP की शुरुआत: IGMDP को 1983 में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नेतृत्व में औपचारिक रूप से शुरू किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रथ्वी, अग्नि, आकाश, त्रिशूल और नाग जैसी मिसाइलों को विकसित करना था, ताकि भारत की मिसाइल क्षमता को मजबूत किया जा सके।

1990 तक प्रमुख उपलब्धियां: 1980 के दशक के अंत तक, डीआरडीओ ने मिसाइल विकास में महत्वपूर्ण प्रगति की थी, खासकर प्रथ्वी की सफल परीक्षण के साथ, जो भारत की पहली स्वदेशी रूप से विकसित सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल थी। 

इसके अलावा, रडार प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली में सुधार किया गया था, जिससे भारतीय रक्षा प्रणालियों को और मजबूत बनाया गया।

3. रणनीतिक प्रगति (1990-2010)

1990 का दशक: 1990 के दशक में, डीआरडीओ ने और भी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को अपनाया। मिसाइल प्रौद्योगिकी, एयरोनॉटिक्स और नौसेना प्रणालियों के क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की गई। अग्नि-I, मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल का सफल विकास भारत को मिसाइल प्रौद्योगिकी में अग्रणी देशों में शामिल करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।

परमाणु प्रौद्योगिकी का एकीकरण: 1998 में पोखरण-II परमाणु परीक्षणों के बाद, डीआरडीओ ने अग्नि और प्रथ्वी जैसी मिसाइल प्रणालियों में परमाणु वारहेड क्षमताओं को एकीकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने बाहरी खतरों के सामने भारत को विश्वसनीय प्रतिरोधक क्षमता प्रदान की।

एयरोनॉटिक्स और विमान विकास: डीआरडीओ ने एयरोनॉटिक्स के क्षेत्र में भी प्रमुख योगदान दिया, खासकर हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) तेजस के विकास में। यह परियोजना 1980 के दशक में शुरू हुई थी और इसका पहला सफल उड़ान 2001 में हुआ।

नौसेना प्रणालियाँ: डीआरडीओ ने भारतीय नौसेना के लिए पनडुब्बी सोनार प्रणाली, टॉरपीडो और रडार प्रणाली भी विकसित की, जिससे इस अवधि में भारत की समुद्री क्षमताएं और मजबूत हुईं।

2010 तक प्रमुख उपलब्धियां: अग्नि-III मिसाइल का सफल परीक्षण, जिसकी रेंज 3,500 किमी से अधिक थी, एक बड़ी उपलब्धि थी। इसके अलावा, डीआरडीओ ने बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा, टैंक विकास (अर्जुन एमबीटी) और स्टील्थ प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण प्रगति की थी।

4. आधुनिकीकरण और उन्नत विकास (2010-वर्तमान)

बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा (BMD) कार्यक्रम: हाल के वर्षों में डीआरडीओ की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक दो-स्तरीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली का विकास है, जो भारत को मिसाइल हमलों से बचाने के लिए डिज़ाइन की गई है। इस प्रणाली में बाह्य और आंतरिक वायुमंडलीय इंटरसेप्टर शामिल हैं।

हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी: डीआरडीओ ने हाइपरसोनिक मिसाइल प्रौद्योगिकी के विकास में भी कदम रखा है। 2020 में हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) का सफल परीक्षण किया गया, जिससे भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया जिनके पास हाइपरसोनिक क्षमताएं हैं।

हल्के बुलेटप्रूफ जैकेट: सैनिकों के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा गियर को बेहतर बनाने के प्रयास के तहत, डीआरडीओ ने हल्के बुलेटप्रूफ जैकेट, जैसे 'अभेद' का विकास किया है। इस नवाचार से सैनिकों पर भार कम करने के साथ-साथ उच्च सुरक्षा स्तर बनाए रखा गया है।

स्टील्थ प्रौद्योगिकी और यूएवी: डीआरडीओ ने मानवरहित हवाई वाहनों (यूएवी) और स्टील्थ प्रौद्योगिकी पर भी काम किया है। रUSTOM श्रृंखला के यूएवी और Ghatak स्वायत्त स्टील्थ विमान डीआरडीओ की उन्नत एयरोस्पेस प्रौद्योगिकियों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं।

5. आत्मनिर्भरता में डीआरडीओ की भूमिका (आत्मनिर्भर भारत)

भारत सरकार की "आत्मनिर्भर भारत" पहल के तहत, डीआरडीओ ने स्वदेशी रक्षा उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक प्रमुख भूमिका निभाई है। विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता को कम करते हुए, डीआरडीओ के नवाचारों ने भारत में एक मजबूत रक्षा निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में मदद की है। 

तेजस फाइटर जेट, अस्त्र मिसाइल और अर्जुन मार्क-II टैंक जैसी परियोजनाएं आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में डीआरडीओ के प्रयासों का स्पष्ट उदाहरण हैं।

6. संगठनात्मक संरचना और कार्यप्रणाली

मुख्यालय: डीआरडीओ का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के तहत कार्य करता है।

DRDO और IIT दिल्ली ने मिलकर बनाई हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट : ABHED

प्रयोगशालाएं: डीआरडीओ पूरे भारत में 52 प्रयोगशालाओं का संचालन करता है, जिनमें से प्रत्येक रक्षा अनुसंधान के विभिन्न क्षेत्रों जैसे एयरोनॉटिक्स, मिसाइल, शस्त्र और इलेक्ट्रॉनिक्स पर केंद्रित है।

प्रमुख व्यक्तित्व: डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, जो डीआरडीओ के कई मिसाइल परियोजनाओं के नेतृत्व में थे, भारत के सबसे प्रमुख वैज्ञानिकों में से एक हैं और उन्हें मिसाइल मैन के रूप में जाना जाता है।

डॉ. जी. सतीश रेड्डी वर्तमान में डीआरडीओ के अध्यक्ष हैं और संगठन को उन्नत प्रौद्योगिकियों की ओर अग्रसर कर रहे हैं।

7. डीआरडीओ की प्रमुख उपलब्धियां

मिसाइल प्रणाली: अग्नि, प्रथ्वी, आकाश और ब्रह्मोस (रूस के सहयोग से) का विकास।

विमान: हल्के लड़ाकू विमान (तेजस) का विकास।

परमाणु क्षमता: पोखरण-II के बाद मिसाइल प्रणालियों में परमाणु वारहेड का एकीकरण।

बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा: BMD प्रणाली के परीक्षण में सफलता।

अंतरिक्ष रक्षा: एंटी-सैटेलाइट हथियारों का सफल परीक्षण।

डीआरडीओ ने भारत की रक्षा संरचना को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

नीचे एसएससी परीक्षा के अभ्यर्थियों के लिए डीआरडीओ का विस्तृत इतिहास दिया गया है।

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FAQ 

DRDO-IIT दिल्ली की 'ABHED' जैकेट क्या है?

'ABHED' एक हल्की और टिकाऊ बुलेट प्रूफ जैकेट है, जिसे DRDO और IIT दिल्ली ने मिलकर भारतीय सैनिकों की सुरक्षा के लिए बनाया है।

'ABHED' जैकेट का वजन कितना है?

'ABHED' जैकेट का वजन लगभग 5-7 किलो है, जो पारंपरिक जैकेट्स की तुलना में काफी हल्की है।

DRDO की स्थापना कब हुई थी?

DRDO की स्थापना 1958 में हुई थी, जिसका उद्देश्य भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना था।

ABHED' जैकेट का परीक्षण कैसे किया गया?

इस जैकेट को विभिन्न हथियारों से बुलेट्स और शार्पनेल्स की मार झेलने के लिए कई कठिन परिस्थितियों में परीक्षण किया गया, जिसमें यह सफल रही।

ABHED' जैकेट की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?

'ABHED' जैकेट हल्की, टिकाऊ, और उच्चतम सुरक्षा मानकों को पूरा करती है। इसे पहनकर सैनिक बिना किसी कठिनाई के लंबी अवधि तक काम कर सकते हैं।

ABHED जैकेट का निर्माण किसने किया है?

'ABHED' जैकेट DRDO और IIT दिल्ली की संयुक्त परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारतीय सैनिकों को हल्की और टिकाऊ सुरक्षा प्रदान करना है।

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