पांच और भाषाओं को मिला शास्त्रीय भाषा का दर्जा: जानिए इसका महत्व और प्रक्रिया

पांच और भाषाओं को मिला शास्त्रीय भाषा का दर्जा: जानिए इसका महत्व और प्रक्रिया

समस्या (Problem)

भारत में सैकड़ों भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन हर भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिलता। शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाना किसी भाषा के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। यह दर्जा भाषा की प्राचीनता, साहित्यिक धरोहर, और सांस्कृतिक योगदान के आधार पर दिया जाता है।

अब तक केवल कुछ गिनी-चुनी भाषाओं को ही शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला है, जिससे सवाल उठता है कि क्या बाकी भाषाएं इस मान्यता के योग्य नहीं हैं। यह सवाल विशेष रूप से उन भाषाओं पर लागू होता है, जिनका ऐतिहासिक और साहित्यिक योगदान बहुत महत्वपूर्ण रहा है।

पांच और भाषाओं को मिला शास्त्रीय भाषा का दर्जा: जानिए इसका महत्व और प्रक्रिया

भारत में पहले ही छह भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है, लेकिन कई और भाषाएं भी इस सूची में शामिल होने का इंतजार कर रही थीं। हाल ही में पांच और भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की प्रक्रिया ने इन भाषाओं को उनकी सांस्कृतिक धरोहर के लिए सम्मानित किया है।

भारतीय भाषाओं का इतिहास सदियों पुराना है, और कुछ भाषाओं की विरासत और सांस्कृतिक महत्व ने उन्हें 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा दिलाया है। 

लेकिन सवाल यह उठता है कि एक भाषा को 'शास्त्रीय' का दर्जा कैसे दिया जाता है, और ऐसा दर्जा मिलने के बाद उस भाषा और उसके बोलने वालों के लिए क्या लाभ होते हैं ?

असमंजस (Agitation)

भारत में शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने के लिए भाषाओं को सख्त मानदंडों से गुजरना पड़ता है। इन मानदंडों में प्रमुखता से तीन मापदंड होते हैं:

1. भाषा का एक समृद्ध और प्राचीन इतिहास होना चाहिए जो कम से कम 1500-2000 साल पुराना हो।

2. उस भाषा की साहित्यिक परंपरा की एक विशाल और महत्वपूर्ण विरासत होनी चाहिए।

3. भाषा में अद्वितीय साहित्यिक योगदान होना चाहिए, जो अन्य भाषाओं से अलग और विशिष्ट हो।

अब तक भारत में छह भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ है:

1. तमिल (2004)

2. संस्कृत (2005)

3. कन्नड़ (2008)

4. तेलुगु (2008)

5. मलयालम (2013)

6. ओडिया (2014)

हालांकि, इसके बाद भी कई भाषाएं इस दर्जे के लिए संघर्ष कर रही थीं। इस प्रक्रिया में देर और सरकार की नीतियों को लेकर कई बार विवाद भी हुआ है। क्या हर भाषा को इतना महत्व मिलना चाहिए? यह सवाल बार-बार उठता रहा है, खासकर उन भाषाओं के लिए जो विशाल बोलने वाले समुदायों के साथ ही साथ समृद्ध साहित्यिक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।

समाधान (Solution)

हाल ही में पांच और भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की प्रक्रिया शुरू की गई है, जो कि भारतीय संस्कृति और विरासत के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण कदम है। इन पांच भाषाओं को शास्त्रीय दर्जा मिलने से यह स्पष्ट होता है कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर को और अधिक समृद्ध बनाने की दिशा में सरकार प्रयासरत है। 

पांच नई भाषाएं जो शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त कर रही हैं:

1. मराठी

2. पंजाबी

3. गुजराती

4. असमीया (असमिया)

5. मैथिली

हालांकि, सरकार द्वारा अभी तक इन पांच भाषाओं की आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन उनकी प्राचीनता और साहित्यिक परंपराओं को देखते हुए इनकी मान्यता की प्रक्रिया जारी है।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने के बाद इन भाषाओं के लिए कई महत्वपूर्ण लाभ होते हैं:

1. भाषाओं का संरक्षण: सरकार और शिक्षण संस्थान इन भाषाओं के साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए संसाधन और योजनाएं तैयार करेंगे।

2. शोध और अध्ययन: शास्त्रीय भाषाओं पर विशेष शोध परियोजनाएं चलाई जाएंगी, जिससे इन भाषाओं के इतिहास और साहित्यिक योगदान को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा।

पांच और भाषाओं को मिला शास्त्रीय भाषा का दर्जा: जानिए इसका महत्व और प्रक्रिया

3. अनुदान और योजनाएं: सरकार इन भाषाओं के साहित्यिक संरक्षण और उनके विकास के लिए विशेष अनुदान और योजनाएं शुरू करेगी।

4. संस्थानों में अध्ययन: इन भाषाओं पर विशेष शोध और अध्ययन के लिए विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थानों में संसाधन मुहैया कराए जाएंगे।

5. सांस्कृतिक धरोहर: इन भाषाओं के माध्यम से उनकी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण होगा, जिससे आने वाली पीढ़ियां भी इन भाषाओं के महत्व को समझ सकेंगी।

प्रमुख लाभ:

विरासत का सम्मान: शास्त्रीय भाषा का दर्जा उन भाषाओं को मिलता है, जिनका सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व होता है। इसका अर्थ है कि इन भाषाओं को उनके ऐतिहासिक योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है।

संरक्षण: सरकारें और संस्थान ऐसी भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिए विशेष योजनाएं बनाती हैं।

शोध और विकास: शास्त्रीय भाषाओं पर शोध को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे इन भाषाओं के साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहरों को समझने और संरक्षित करने में मदद मिलती है।

भारत की शास्त्रीय भाषाओं की सूची:

अब तक भारत में निम्नलिखित भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ है:

1. तमिल (2004): तमिल, जिसे दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक माना जाता है, 2004 में पहली बार शास्त्रीय भाषा घोषित की गई।

2. संस्कृत (2005): भारतीय साहित्य और ज्ञान का महत्वपूर्ण स्रोत संस्कृत भाषा को 2005 में शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला।

3. कन्नड़ (2008): कन्नड़ को उसके प्राचीन साहित्य और भाषा विज्ञान के लिए 2008 में मान्यता मिली।

4. तेलुगु (2008): तेलुगु भाषा भी 2008 में शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने वाली भाषाओं में शामिल हुई।

5. मलयालम (2013): मलयालम को 2013 में शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला।

6. ओडिया (2014): ओडिशा की प्रमुख भाषा ओडिया को 2014 में शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिली।

पांच और भाषाओं को मिला शास्त्रीय भाषा का दर्जा: जानिए इसका महत्व और प्रक्रिया

पांच और भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने की प्रक्रिया भारतीय भाषाओं की समृद्धि और सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करती है। यह न केवल भाषाओं को सम्मानित करता है, बल्कि उनके संरक्षण और विकास के लिए एक नई दिशा भी प्रदान करता है। शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने के बाद इन भाषाओं के बोलने वालों को गर्व की अनुभूति होती है, साथ ही उनकी भाषा को संरक्षित करने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का मार्ग भी प्रशस्त होता है।

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FAQ 

शास्त्रीय भाषा का दर्जा क्या है?

शास्त्रीय भाषा का दर्जा एक विशेष मान्यता है, जो भाषाओं के प्राचीन इतिहास, समृद्ध साहित्यिक परंपराओं और अद्वितीय योगदान को ध्यान में रखते हुए दी जाती है। शास्त्रीय भाषा का दर्जा उन भाषाओं को दिया जाता है, जिनका इतिहास और साहित्यिक योगदान 1500-2000 साल पुराना होता है।

भारत में कितनी भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला है?

भारत में अब तक 6 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला है: तमिल, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम, और ओडिया। अब तक भारत में कुल 11 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला है, जिसमें तमिल, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम, ओडिया और हाल ही में मराठी, पंजाबी, गुजराती, असमीया, और मैथिली शामिल हैं।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने के मापदंड क्या हैं?

भाषा का प्राचीन इतिहास, समृद्ध साहित्यिक धरोहर, और अद्वितीय साहित्यिक योगदान होना आवश्यक है।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने के बाद भाषाओं को क्या लाभ होते हैं?

शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिलने पर साहित्यिक संरक्षण, शोध और विकास, और सरकार से अनुदान जैसी सुविधाएं मिलती हैं।

पहली शास्त्रीय भाषा कौन सी थी जिसे यह दर्जा मिला?

तमिल पहली भाषा थी जिसे 2004 में शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला।

क्या शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने के बाद नई योजनाएं चलाई जाती हैं?

हां, शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने के बाद भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिए विशेष योजनाएं चलाई जाती हैं।

पांच नई भाषाएं कौन सी हैं जिन्हें शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला है?

मराठी, पंजाबी, गुजराती, असमीया, और मैथिली को हाल ही में शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है।

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