हेमू विक्रमादित्य का इतिहास: मुग़ल साम्राज्य-भारत का मध्यकालीन इतिहास

हेमू विक्रमादित्य का इतिहास: मुग़ल साम्राज्य |भारत का मध्यकालीन इतिहास

हेमू विक्रमादित्य का इतिहास: एक वीर योद्धा की अनसुनी कहानी

हेमू विक्रमादित्य या सिर्फ हेमू का नाम भारतीय इतिहास में वीरता और संघर्ष के प्रतीक के रूप में लिया जाता है। उनका पूरा नाम हेमचंद्र था और वे 16वीं सदी में भारत के प्रमुख योद्धाओं में से एक थे। 

हेमू विक्रमादित्य: जानें 16वीं सदी के इस वीर योद्धा के जीवन, उनकी लड़ाइयों और दिल्ली के सिंहासन पर उनके ऐतिहासिक योगदान के बारे में।

हेमू विक्रमादित्य का इतिहास: मुग़ल साम्राज्य | भारत का मध्यकालीन इतिहास

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

हेमचंद्र का जन्म हरियाणा के रेवाड़ी में एक साधारण परिवार में हुआ था। वे एक व्यावसायिक जाति से संबंध रखते थे।

हेमू का उदय

हेमू का जीवन युद्ध और राजनीति के उतार-चढ़ावों से भरा था। उन्हें शेरशाह सूरी और उनके बेटे इस्लाम शाह सूरी के दरबार में महत्वपूर्ण पद दिए गए। 

हेमू ने शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद इस्लाम शाह सूरी की सेना का नेतृत्व किया। जब इस्लाम शाह की भी मृत्यु हो गई, तो हेमू ने दिल्ली और आगरा की सत्ता अपने हाथ में ली और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।

दिल्ली का अंतिम हिंदू सम्राट : हेमू 

आदिल शाह सूर ने चुनार को अपनी राजधानी बनाया तथा हेमू को मुगलों को हिंदुस्तान से बाहर निकालने के लिए नियुक्त किया। हेमू रेवाड़ी का निवासी था जो वैश्य (बनिया) कुल में पैदा हुआ था। इसका मूल नाम हेमचंद्र था।

आरंभिक दिनों में वह रेवाड़ी की सड़कों पर नमक बेचा करता था। राज्य की सेवा में सर्वप्रथम उसे माप ताैल करने वाले के रूप में नौकरी मिल गई। इस्लाम शाह ने उसकी योग्यता से प्रभावित होकर दरबार में एक गुप्त पद के लिए नियुक्त कर दिया।

आदिल शाह के शासक बनते ही हेमू प्रधानमंत्री बनाया गया। मुस्लिम शासन में मात्र 2 हिंदू टोडरमल एवं हेमू ही मुख्यमंत्री के पद पर पहुंच सके थे, जबकि मात्र एक ही हिंदू हेमू दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।

हेमू ने अपने स्वामी के लिए 24 लड़ाईयां लड़ी थी जिसमें उसे 22 युद्धों में सफलता मिली थी।

हेमू विक्रमादित्य का इतिहास: मुग़ल साम्राज्य | भारत का मध्यकालीन इतिहास

हेमू आगरा और ग्वालियर पर अधिकार करता हुआ 7 अक्टूबर 1556 ई. को तुगलकाबाद में तरदी बेग को परास्त कर दिल्ली पर कब्जा कर लिया।

हेमू राजा विक्रमादित्य की उपाधि धारण करने वाला 14वां और अंतिम शासक था। वह दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला अंतिम हिंदू सम्राट था।

मध्यकालीन भारत में वह एकमात्र शासक था जिसने दिल्ली के सिंहासन पर अधिकार किया। 350 वर्षों के विदेशी शासन को समाप्त कर हेमू ने दिल्ली पर स्वदेशी शासन को स्थापित किया जो कि बहुत ही अल्पकालिक था।

पानीपत की दूसरी लड़ाई

हेमू की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण 1556 में हुई पानीपत की दूसरी लड़ाई है। इस समय, अकबर की सेना से हेमू का सामना हुआ। इस युद्ध को भारत के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण युद्धों में से एक माना जाता है। 

हेमू ने अपनी बहादुरी से अकबर की सेना को कड़ी टक्कर दी, लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें एक तीर से गंभीर चोट लग गई, और वे युद्ध में घायल हो गए। उनकी पराजय के बाद मुगल साम्राज्य ने फिर से दिल्ली पर कब्जा कर लिया।

हेमू की मृत्यु और विरासत

पानीपत की दूसरी लड़ाई के बाद, अकबर के सेनापति बैरम खान ने हेमू को बंदी बना लिया और उनकी हत्या कर दी। उनकी मृत्यु के साथ भारत में सूरी वंश का अंत हो गया और मुगल साम्राज्य ने पूरे उत्तर भारत पर कब्जा कर लिया। हेमू को उनकी बहादुरी, नेतृत्व क्षमता और सैन्य कौशल के लिए आज भी याद किया जाता है।

हेमू विक्रमादित्य का जीवन एक साधारण व्यक्ति से एक शक्तिशाली शासक बनने की कहानी है। 

हेमू विक्रमादित्य का इतिहास: मुग़ल साम्राज्य | भारत का मध्यकालीन इतिहास

उन्होंने न केवल अपने समय के सबसे बड़े योद्धाओं में से एक के रूप में अपनी पहचान बनाई, बल्कि इतिहास में अपने नाम को अमर कर दिया। 

उनका योगदान भारतीय इतिहास में अद्वितीय है और उनकी वीरता हमेशा प्रेरणादायक रहेगी।

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FAQ

हेमू विक्रमादित्य कौन था?

हेमू विक्रमादित्य, जिसे हेमचंद्र भी कहा जाता है, भारत का एक वीर योद्धा और सेनापति था। वह 16वीं शताब्दी में अकबर के शासनकाल के दौरान उत्तर भारत में अफगानों की ओर से शासन करता था। उसने अपने बहादुरी और रणनीतिक कौशल से कई युद्धों में विजय प्राप्त की और दिल्ली का राजा बन गया। उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की और स्वतंत्र शासक बनने का प्रयास किया।

हेमू कौन था?

हेमू एक साधारण व्यापारी परिवार से आने वाला व्यक्ति था, जिसने अपनी प्रतिभा और वीरता के बल पर अफगान शासक शेर शाह सूरी के अधीन सेनापति के रूप में प्रमुख स्थान प्राप्त किया। बाद में, उसने दिल्ली की गद्दी पर कब्जा किया और खुद को 'विक्रमादित्य' की उपाधि दी।

हेमू कौन था और वह किसके द्वारा पराजित हुआ था और कब?

हेमू विक्रमादित्य एक शक्तिशाली सेनापति और दिल्ली का राजा था, जिसे 5 नवंबर 1556 को पानीपत की दूसरी लड़ाई में अकबर की सेना के प्रमुख बैरम खान द्वारा पराजित किया गया। इस लड़ाई में हेमू की हार के बाद मुगलों का पुनः दिल्ली पर अधिकार स्थापित हुआ।

अकबर ने किस व्यक्ति के नेतृत्व में हेमचंद्र हेमू को पराजित किया था?

अकबर के नाबालिग होने के कारण, हेमू को पराजित करने वाली सेना का नेतृत्व अकबर के संरक्षक और वजीर, बैरम खान ने किया था। बैरम खान के कुशल नेतृत्व में मुगल सेना ने पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू को निर्णायक रूप से हराया।

हेमचंद्र विक्रमादित्य की पत्नी का नाम क्या था?

हेमचंद्र विक्रमादित्य की पत्नी का नाम इतिहास में स्पष्ट रूप से दर्ज नहीं है। हेमू के निजी जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है, क्योंकि वह मुख्य रूप से अपने सैन्य अभियानों और राजनीतिक उपलब्धियों के लिए जाना जाता है।

हेमू का दूसरा नाम क्या था?

हेमू का पूरा नाम हेमचंद्र था। उसे हेमू, हेमचंद्र विक्रमादित्य और सिर्फ विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है। विक्रमादित्य की उपाधि उसे उसकी जीतों और शक्ति के प्रतीक के रूप में दी गई थी।

हेमू किसका प्रधानमंत्री था?

हेमू, शेर शाह सूरी के उत्तराधिकारी और सूरी वंश के शासक इस्लाम शाह सूरी का प्रधानमंत्री था। उसने इस्लाम शाह सूरी के अधीन कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक और सैन्य भूमिकाएं निभाईं।

हेमू किस वंश का था?

हेमू भारतीय इतिहास में एक साधारण व्यापारी परिवार से था और किसी शाही वंश से नहीं आया था। वह मूल रूप से रेवाड़ी, हरियाणा का रहने वाला था और एक हिंदू वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखता था।

हेमू के हाथी का नाम क्या था?

हेमू के युद्ध में इस्तेमाल किए गए हाथी का नाम 'हवाई' था। इसी हाथी पर सवार होकर उसने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया। पानीपत की दूसरी लड़ाई में भी वह इसी हाथी पर सवार था।

हेमू के पिता का नाम क्या था?

हेमू के पिता का नाम राय पूरण दास था। वह रेवाड़ी के एक साधारण व्यापारी थे, जो नमक का व्यापार करते थे। उनके पुत्र हेमू ने साधारण पृष्ठभूमि से उठकर सैन्य और प्रशासनिक क्षेत्रों में ख्याति अर्जित की।

हेमू का जन्म कब हुआ था?

हेमू का जन्म लगभग 1501 ईस्वी में हरियाणा के रेवाड़ी में हुआ था। उसका परिवार एक वैश्य समुदाय से संबंधित था और सामान्य व्यापारी जीवन जीता था, लेकिन हेमू ने अपनी सैन्य और राजनीतिक काबिलियत से खुद को स्थापित किया।

हेमू का मकबरा कहां है?

हेमू का मकबरा हरियाणा के पानीपत जिले में स्थित है। यह मकबरा पानीपत की दूसरी लड़ाई के बाद उसके शव को दफनाने के बाद बनाया गया था। यह मकबरा आज भी इतिहास प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है।

हेमू किस राजवंश का सेनापति और मुख्यमंत्री था?

हेमू, सूरी वंश के अधीन एक प्रमुख सेनापति और मुख्यमंत्री था। सूरी वंश शेर शाह सूरी द्वारा स्थापित किया गया था और हेमू ने उसके उत्तराधिकारी इस्लाम शाह सूरी के अधीन महत्वपूर्ण प्रशासनिक और सैन्य कार्य किए।

विक्रमादित्य की उपाधि धारण करने वाला प्रथम शासक कौन था?

विक्रमादित्य की उपाधि धारण करने वाला प्रथम शासक राजा विक्रमादित्य था, जो प्राचीन भारत का एक महान सम्राट था। उसने 56 ईसा पूर्व में उज्जैन में शासन किया था और उसे भारतीय इतिहास में साहसी और न्यायप्रिय राजा के रूप में जाना जाता है।

भारत का अंतिम हिंदू सम्राट कौन था?

भारत का अंतिम हिंदू सम्राट हेमू विक्रमादित्य था, जिसने 1556 में दिल्ली की गद्दी पर कब्जा किया। हालांकि, उसका शासन बहुत ही अल्पकालिक था और पानीपत की दूसरी लड़ाई में उसकी हार के बाद मुगलों ने पुनः दिल्ली पर अधिकार कर लिया।

हल्दीघाटी युद्ध का विस्तृत वर्णन कीजिए?

हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को मेवाड़ के महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध राजस्थान के हल्दीघाटी में हुआ, जहां महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ वीरतापूर्वक संघर्ष किया। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व चेतक नामक उनके वीर घोड़े ने किया, जबकि मुगल सेना का नेतृत्व राजा मानसिंह ने किया। यद्यपि इस युद्ध में महाराणा प्रताप की हार हुई, लेकिन यह उनके संघर्ष और साहस का प्रतीक बन गया।

हेमू विक्रमादित्य की मृत्यु कब हुई?

हेमू विक्रमादित्य की मृत्यु 5 नवंबर 1556 को पानीपत की दूसरी लड़ाई के दौरान हुई। इस युद्ध में मुगल सेना के एक तीर के वार से वह गंभीर रूप से घायल हो गया था, जिसके बाद उसे बंदी बना लिया गया और अकबर के सामने लाकर उसका सिर काट दिया गया। उसकी मृत्यु के साथ ही सूरी वंश के पतन की कहानी भी समाप्त हो गई।

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