जयपुर का जंतर मंतर: 18वीं शताब्दी में राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने बनवाया था

18 वीं शताब्दी में राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने बनवाया था जयपुर का जंतर मंतर 

भारत का इतिहास और धरोहर विश्व भर में अपनी विशिष्ट कला, संस्कृति और विज्ञान के लिए जाना जाता है। जयपुर का जंतर मंतर भी 18वीं शताब्दी में राजा सवाई जयसिंह द्वितीय के प्रयासों से बनाया गया था। 

यह न केवल खगोलशास्त्र में अद्वितीय है, बल्कि भारतीय ज्योतिष और विज्ञान के इतिहास में भी एक महत्वपूर्ण जगह है। इस लेख में जयपुर के जंतर मंतर का निर्माण, उद्देश्य और वैज्ञानिक महत्व समझा जाएगा।

जयपुर का जंतर मंतर: 18वीं शताब्दी में राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने बनवाया था

सवाई जय सिंह (1688 - 1747 ई.) 

18 वीं शताब्दी का सबसे श्रेष्ठ राजपूत शासक अजमेर का सवाई जयसिंह था। इसे मिर्जा राजा सवाई की उपाधि मुगल शासक फर्रूखशियर ने दी थी। जय सिंह एक विख्यात राजनेता, कानून निर्माता और सुधारक था, परंतु सबसे अधिक वह विज्ञान प्रेमी था। उसने 1728 ई. में जयपुर शहर की स्थापना की थी।

जयसिहं एक महान खगोलशास्त्री भी था। उसने 5 स्थलों पर दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, वाराणसी और मथुरा में सही और आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित वैधशालाएं बनवाई हैं। उसने सारणियों का एक सेट तैयार किया जिससे लोगों को खगोल शास्त्र संबंधी पर्यवेक्षण करने में सहायता मिले।

उपकरण सेट का नाम जिज मुहम्मदशाही था। उसने यूक्लिड की रेखागणित के तत्व का अनुवाद संस्कृत में कराया। उसने त्रिकोणमिति की बहुत सारी कृतियाें और लघुगणकों को बनाने और उनके प्रयोग संबंधी नेपियर की रचना का अनुवाद संस्कृत में कराया।

जयपुर का जंतर मंतर: 18वीं शताब्दी में राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने बनवाया था: विज्ञान और खगोल विज्ञान का अद्भुत संगम

जयपुर का जंतर मंतर: 18वीं शताब्दी में राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने बनवाया था

18वीं शताब्दी में खगोल विज्ञान को कई मुश्किलों से गुजरना पड़ा। उस समय के खगोलीय उपकरण न केवल अचूक थे, बल्कि उनके माप हमेशा गलत थे। राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने सही खगोलीय गणनाओं और उपकरणों की आवश्यकता को समझा। 

उन्हें लगता था कि ज्योतिष और विज्ञान में भी त्रुटियां होंगी अगर खगोलीय गणनाएं सही और सटीक नहीं होंगी। उस समय यूरोप में खगोल विज्ञान तेजी से बढ़ रहा था, लेकिन भारत में ऐसे उपकरणों की अभी भी कमी थी।

जयसिंह द्वितीय एक महान शासक थे, लेकिन वह खगोलशास्त्र और गणित में भी बहुत रुचि रखते थे। उन्हें खगोलीय गणनाओं का बहुत महत्व था। उन्हें अपने अध्ययन के दौरान पता चला कि खगोलशास्त्र में उस समय उपयोग किए जा रहे उपकरण उतने सटीक नहीं थे। 

यह कमी भी खगोलीय भविष्यवाणियों में त्रुटियों को जन्म देती थी। उस समय खगोलशास्त्रियों द्वारा उपयोग किए गए यूरोपीय उपकरण भी उनकी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर रहे थे।

राजा सवाई जयसिंह द्वितीय को डर था कि समाज, ज्योतिष और धार्मिक क्रियाओं में बाधा डाल सकता है अगर समय पर सटीक खगोलीय गणनाएं नहीं की जाएंगी। 

उन्हें पता चला कि आधुनिक खगोलीय गणनाओं के लिए एक बड़ी और सटीक वेधशाला की जरूरत है, जिससे आकाशीय घटनाओं का अध्ययन और गणना किया जा सके। 

यह विचार इतना गहराई से उनके भीतर व्याप्त था कि उन्होंने अपनी प्राथमिकताओं में इसे शामिल कर लिया।

समाधान 

समस्या को हल करने के लिए राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने भारत में पांच विशाल खगोलशास्त्रीय वेधशालाओं का निर्माण करवाया, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध है जयपुर का जंतर मंतर। जयपुर की इस अद्वितीय वेधशाला का निर्माण 1724 में शुरू हुआ और 1734 में पूरा हुआ। यह उनके द्वारा निर्मित अन्य वेधशालाओं (दिल्ली, मथुरा, उज्जैन, वाराणसी) से कहीं अधिक विशाल और सटीक थी।

जयपुर का जंतर मंतर मुख्य रूप से खगोलीय गणनाओं के लिए निर्मित किया गया था, ताकि दिन, महीने, और वर्ष का सही माप किया जा सके। इस वेधशाला के माध्यम से आकाशीय घटनाओं, ग्रहों की स्थिति, और सूर्य के गति को सटीक रूप से मापा जा सकता था।

इस वेधशाला का निर्माण करते समय राजा जयसिंह द्वितीय ने भारत और विदेशों से विशेषज्ञों को बुलाकर सहायता ली। उन्होंने प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्र को यूरोपीय खगोलशास्त्र के साथ जोड़कर एक अद्वितीय मिश्रण तैयार किया। इसके अलावा, उन्होंने ऐसे उपकरण तैयार करवाए जो उस समय के सभी खगोलीय यंत्रों से अधिक सटीक और प्रभावी थे।

जंतर मंतर का वैज्ञानिक महत्व

जयपुर के जंतर मंतर में कई विशिष्ट यंत्र हैं, जो खगोलशास्त्र और ज्योतिष में बहुत महत्वपूर्ण हैं। अब इन यंत्रों और उनके उपयोग के बारे में अधिक जानें:

1. सम्राट यंत्र

यह सूर्य की गति और समय मापने के लिए जंतर मंतर का सबसे बड़ा और प्रमुख यंत्र है। यह घड़ी की तरह सही समय बता सकता है, क्योंकि यह इतना सटीक है। सम्राट यंत्र की ऊँचाई 27 मीटर है, और इसकी छाया सूर्य का समय मापती है।

2. जयप्रकाश यंत्र

खगोलीय पिंडों की स्थिति को मापने के लिए जयप्रकाश यंत्र का उपयोग किया जाता है। यह एक बड़ा और विशिष्ट उपकरण है जो खगोलशास्त्रियों को दिन-रात हर समय आकाशीय पिंडों की सटीक स्थिति का पता लगाने में मदद करता है। 

यंत्र में दो अर्धगोलाकार गड्ढे हैं, जिन पर अलग-अलग आकाशीय पिंडों की छाया है।

3. राम यंत्र

आकाशीय पिंडों की उन्नति और अवनति का मापन करने के लिए राम यंत्र का उपयोग किया जाता है। खगोलशास्त्री इस यंत्र का उपयोग करके सितारों और ग्रहों की स्थिति को माप सकते हैं। विशेष रूप से खगोलशास्त्रीय गणनाओं में यह उपकरण उपयोगी है।

4. नाड़ी वलय यंत्र

यह यंत्र मुख्य रूप से समय मापन के लिए उपयोग किया जाता है। इस उपकरण की छाया से समय को सटीक रूप से मापा जा सकता है। इस उपकरण की संरचना और माप की सटीकता इसे दूसरों से अलग बनाती है।

5. कपाला यंत्र

आकाशीय पिंडों की गणना करने के लिए कपाला यंत्र का उपयोग किया जाता है। खगोलशास्त्रियों को यह यंत्र ग्रहों और तारों की स्थिति की सटीक जानकारी देता है।

जयपुर का जंतर मंतर: 18वीं शताब्दी में राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने बनवाया था

जंतर मंतर का निर्माण: एक ऐतिहासिक केस स्टडी

जंतर मंतर का निर्माण केवल खगोलीय उपकरणों का निर्माण नहीं था; यह भारतीय गणित और खगोलशास्त्र का एक अद्वितीय संगम था। इसे बनाने में राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने यूरोपीय तकनीक और प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्र दोनों का उपयोग किया। इस वेधशाला को उन्होंने अपने खगोलशास्त्रियों और विद्वानों के साथ मिलकर बनाया था।

जयपुर का जंतर मंतर उनकी सूझबूझ से आज भी दुनिया भर में अद्वितीय है। 2010 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।

जंतर मंतर और एसएससी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण तथ्य

1. निर्माण वर्ष: 1724 से 1734 के बीच।

2. निर्माता: राजा सवाई जयसिंह द्वितीय।

3. उद्देश्य: खगोलीय गणनाओं और ज्योतिष के लिए सही और सटीक यंत्रों का निर्माण।

4. विशेष यंत्र: सम्राट यंत्र, जयप्रकाश यंत्र, राम यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र।

5. यूनेस्को विश्व धरोहर: 2010 में घोषित।

6. प्रेरणा स्रोत: पुराने यूरोपीय और भारतीय खगोलशास्त्रों का एकीकरण

जयपुर का जंतर मंतर एक विशिष्ट खगोलीय वेधशाला है, जो भारतीय खगोलशास्त्र और गणित में अद्वितीय है। आज भी, यह स्थान खगोलीय गणनाओं और ज्योतिष के क्षेत्र में अद्वितीय माना जाता है क्योंकि राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने दूरदर्शिता और विज्ञान में अपना योगदान दिया था। 

जयपुर का जंतर मंतर भारत के वैज्ञानिक और खगोलशास्त्रीय ज्ञान का प्रतीक है, साथ ही एक ऐतिहासिक धरोहर भी है।

18वीं शताब्दी में खगोलशास्त्र और विज्ञान में कई चुनौतियां थीं, लेकिन राजा जयसिंह ने भारतीय खगोलशास्त्र की परंपराओं को पुनर्जीवित करके यूरोपीय विज्ञान के साथ उनका तालमेल भी बनाया। 

जंतर मंतर की संरचनाओं में कला, विज्ञान और संस्कृति का अद्भुत संगम देखा जा सकता है, जो विज्ञान के क्षेत्र में बहुत फायदेमंद था।

आज भी जयपुर का जंतर मंतर खगोलशास्त्रियों, इतिहासकारों और विज्ञान प्रेमियों के लिए एक बड़ा केंद्र है। अब भी, इसके कुछ यंत्रों, जैसे सम्राट यंत्र, राम यंत्र, जयप्रकाश यंत्र और नाड़ी वलय यंत्र, वैज्ञानिक अध्ययन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।

जयपुर का जंतर मंतर: 18वीं शताब्दी में राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने बनवाया था

राजा सवाई जय सिहं 

राजा सवाई जयसिंह द्वितीय कच्छवाहा वंश (Kachwaha Dynasty) से संबंधित थे। कच्छवाहा वंश राजस्थान के जयपुर क्षेत्र में शासन करने वाला एक प्रमुख राजपूत वंश था। सवाई जयसिंह द्वितीय को जयपुर का संस्थापक माना जाता है, और वे इस वंश के सबसे प्रमुख शासकों में से एक थे।

उनके शासनकाल में जयपुर को एक सुव्यवस्थित शहर और खगोलशास्त्र के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियों के लिए जाना गया, जिसमें जंतर मंतर का निर्माण भी शामिल है।

सवाई जयसिंह द्वितीय का शासनकाल 18वीं शताब्दी में था, जब मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था और भारत में क्षेत्रीय राज्यों का उदय हो रहा था। यह समय अवधि मध्यकालीन भारत की समाप्ति और आधुनिक भारत के प्रारंभिक काल के रूप में मानी जाती है।

राजा सवाई जयसिंह द्वितीय (1688-1743) का जीवन और उनका शासनकाल 18वीं शताब्दी का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें खगोलशास्त्र, विज्ञान, और वास्तुकला के क्षेत्र में उनकी अद्वितीय उपलब्धियां शामिल हैं। उन्होंने न केवल राजस्थान में जयपुर शहर की स्थापना की, बल्कि उन्होंने भारत में खगोलशास्त्र के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

राजा सवाई जयसिंह द्वितीय का जीवन परिचय

पूरा नाम: महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय
जन्म: 3 नवंबर 1688
जन्म स्थान: आमेर (राजस्थान)
पिता: राजा बिशन सिंह
वंश: कच्छवाहा राजपूत
शासनकाल: 1699 से 1743

मृत्यु: 21 सितंबर 1743

राजा सवाई जयसिंह द्वितीय कच्छवाहा वंश के राजा थे, जो जयपुर (तब आमेर) के शासक थे। उन्हें विज्ञान, खगोलशास्त्र, और गणित में गहरी रुचि थी, और इन क्षेत्रों में उनके योगदान के लिए उन्हें आज भी सम्मानित किया जाता है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

सवाई जयसिंह द्वितीय का जन्म 3 नवंबर 1688 को आमेर में हुआ था। उनके पिता राजा बिशन सिंह थे, जो आमेर के शासक थे। जयसिंह ने बचपन से ही विज्ञान, गणित, खगोलशास्त्र, और राजनीति में गहरी रुचि दिखाई। उनके शिक्षकों ने उन्हें इन क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिया, और बाद में वे इन विषयों के विशेषज्ञ बन गए।

1699 में, मात्र 11 वर्ष की आयु में, सवाई जयसिंह द्वितीय को आमेर के राजा के रूप में गद्दी सौंपी गई। उस समय भारत में मुग़ल साम्राज्य का प्रभुत्व था, और जयसिंह ने मुग़लों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे।

शासनकाल और उपलब्धियां

1. खगोलशास्त्र और विज्ञान में योगदान

सवाई जयसिंह द्वितीय को सबसे अधिक उनके खगोलशास्त्रीय योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने भारतीय और यूरोपीय खगोलशास्त्र का अध्ययन किया और अपनी वेधशालाएं स्थापित कीं।

जंतर मंतर (1724-1734)

समय: 1724-1734

सवाई जयसिंह ने भारत के विभिन्न शहरों में पाँच प्रमुख वेधशालाएं (जंतर मंतर) बनवाईं। इनमें दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी शामिल हैं। इन वेधशालाओं में खगोलीय घटनाओं की सटीक गणना करने के लिए बड़े-बड़े यंत्र लगाए गए थे। 
जयपुर का जंतर मंतर, जिसे उन्होंने 1728 में बनवाना शुरू किया और 1734 में पूरा किया, सबसे प्रमुख और विस्तृत वेधशाला मानी जाती है। इसे 2010 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता मिली।

खगोलीय यंत्र और उनका महत्व

सवाई जयसिंह ने यूरोप और भारत दोनों के खगोलशास्त्रियों से प्रेरणा लेकर खगोलीय यंत्रों का निर्माण करवाया। इनमें सम्राट यंत्र, जयप्रकाश यंत्र, राम यंत्र, और कपाला यंत्र प्रमुख थे। इन यंत्रों का उपयोग सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों, और तारों की स्थिति को मापने के लिए किया जाता था

2. वास्तुकला और नगर नियोजन

जयपुर शहर की स्थापना (1727)

समय: 1727

राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1727 में जयपुर शहर की स्थापना की। जयपुर को भारत का पहला योजनाबद्ध शहर माना जाता है, और इसकी वास्तुकला और नगर नियोजन अद्वितीय हैं। उन्होंने जयपुर को एक मजबूत व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाया। इस शहर का डिज़ाइन भारतीय वास्तुकला के साथ-साथ पश्चिमी तकनीकों के मिश्रण से प्रेरित था। 

इसके निर्माण के लिए बंगाल के प्रसिद्ध वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य को नियुक्त किया गया था। जयपुर को वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार बनाया गया था, और इसकी सड़कों और बाजारों का डिज़ाइन बेहद सुव्यवस्थित था।

आमेर से जयपुर का स्थानांतरण

राजा सवाई जयसिंह ने अपने पूर्वजों की राजधानी आमेर से जयपुर को राजधानी स्थानांतरित किया। आमेर किले की सीमाओं और उसके पानी की सीमित उपलब्धता के कारण जयसिंह ने एक नई राजधानी की आवश्यकता महसूस की। जयपुर में उन्होंने एक विशाल और मजबूत शहर की नींव रखी, जिसमें चौड़ी सड़कों, खुले बाजारों और सुरक्षित दीवारों का निर्माण किया गया।

3. मुग़ल साम्राज्य के साथ संबंध

सवाई जयसिंह द्वितीय ने मुग़ल साम्राज्य के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे। औरंगजेब की मृत्यु के बाद, मुग़ल साम्राज्य कमजोर हो गया था, लेकिन जयसिंह ने राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए मुग़लों के साथ अपना संबंध मजबूत बनाए रखा। 

मुग़ल शासक बहादुर शाह I ने उन्हें सवाई (श्रेष्ठ) की उपाधि दी, जिसका अर्थ "एक से डेढ़ गुना श्रेष्ठ" होता है। यह उपाधि उन्हें उनकी खगोलशास्त्रीय उपलब्धियों और प्रशासनिक कौशल के लिए दी गई थी।

4. युद्ध और सैन्य अभियानों में भागीदारी

राजा सवाई जयसिंह केवल एक विद्वान और खगोलशास्त्री ही नहीं थे, बल्कि एक कुशल योद्धा भी थे। उन्होंने मुग़ल बादशाहों के लिए कई सैन्य अभियानों में भाग लिया।

मुग़ल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के बाद 1707 में उत्तराधिकार की लड़ाई में जयसिंह ने बहादुर शाह I की सहायता की।

1708 में, बहादुर शाह I ने जयसिंह को मालवा का सूबेदार नियुक्त किया।

1712 में, फर्रुखसियर के शासनकाल के दौरान भी जयसिंह का प्रभाव बना रहा। उन्होंने मुग़लों के पक्ष में मराठों के खिलाफ अभियान चलाए।

1719 में, उन्होंने मुग़ल साम्राज्य के विद्रोहियों को दबाने में मदद की।

5. धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान

सवाई जयसिंह ने धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया। उनके शासनकाल में जयपुर में विभिन्न धार्मिक समुदायों को स्वतंत्रता दी गई थी। जयसिंह ने हिंदू मंदिरों और संस्कृत विद्यालयों का निर्माण करवाया। उन्होंने वैदिक परंपराओं और ज्योतिषशास्त्र को प्रोत्साहित किया।

जयपुर का जंतर मंतर: 18वीं शताब्दी में राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने बनवाया था

राजा सवाई जयसिंह द्वितीय की प्रमुख उपलब्धियां

1. खगोलशास्त्रीय वेधशालाओं का निर्माण: जयसिंह ने भारत के विभिन्न शहरों में पाँच वेधशालाएं (जंतर मंतर) स्थापित कीं, जिनका खगोलशास्त्र के क्षेत्र में महान योगदान रहा।

2. जयपुर शहर की स्थापना: जयपुर को वास्तुकला और नगर नियोजन का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है, जिसे सवाई जयसिंह द्वितीय ने स्थापित किया था।

3. मुग़ल साम्राज्य के साथ संबंध: जयसिंह ने मुग़लों के साथ मजबूत संबंध बनाए रखे और उन्हें "सवाई" की उपाधि मिली।

4. वैज्ञानिक और ज्योतिषीय योगदान: जयसिंह ने यूरोपीय और भारतीय खगोलशास्त्रियों के ज्ञान को मिलाकर अद्वितीय खगोलीय यंत्रों का निर्माण करवाया।

सवाई जयसिंह द्वितीय के अंतिम दिन

राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1743 तक जयपुर पर शासन किया। उनके शासनकाल के अंतिम वर्षों में उन्होंने अपने राज्य की सुरक्षा और नगर नियोजन पर ध्यान केंद्रित किया। 21 सितंबर 1743 को उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, उनका राज्य और उनकी विरासत उनके उत्तराधिकारियों द्वारा आगे बढ़ाई गई।

जयपुर का जंतर मंतर: 18वीं शताब्दी में राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने बनवाया था
सवाई जयसिंह द्वितीय का जीवन और उनके कार्य विज्ञान, खगोलशास्त्र, वास्तुकला, और राजनीति के क्षेत्र में भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक हैं। 

उनकी दूरदर्शिता और उनके कार्यों का प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है, विशेष रूप से जयपुर शहर और जंतर मंतर के माध्यम से। 

उनकी खगोलशास्त्रीय और वैज्ञानिक उपलब्धियां न केवल भारतीय विज्ञान की धरोहर हैं, बल्कि विश्व विज्ञान के इतिहास में भी उनका महत्वपूर्ण स्थान है।

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जयपुर का जंतर मंतर किसने बनवाया था और कब?

जयपुर का जंतर मंतर राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 18वीं शताब्दी में बनवाया था। इसका निर्माण 1724 में शुरू हुआ और 1734 में पूरा हुआ।

जंतर मंतर का प्रमुख उद्देश्य क्या था?

जंतर मंतर का प्रमुख उद्देश्य खगोलीय गणनाएं करना और सूर्य, ग्रहों, और सितारों की गति का सटीक मापन करना था।

जयपुर का जंतर मंतर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल कब बना?

जयपुर का जंतर मंतर 2010 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त हुआ।

सम्राट यंत्र का क्या उपयोग है?

सम्राट यंत्र का उपयोग सूर्य की गति और समय मापने के लिए किया जाता है। यह यंत्र जंतर मंतर का सबसे बड़ा और सटीक उपकरण है।

राजासवाई जयसिंह द्वितीय का खगोलशास्त्र में योगदान क्या है?

राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने भारत में पाँच प्रमुख वेधशालाएं बनवाईं, जिनमें से जयपुर का जंतर मंतर सबसे प्रमुख है। उन्होंने खगोलशास्त्र में भारतीय और यूरोपीय तकनीकों का उपयोग करके अद्वितीय उपकरण बनाए।

जयपुर के जंतर मंतर में कुल कितने यंत्र हैं और उनका क्या महत्व है?

जयपुर के जंतर मंतर में कुल 19 प्रमुख यंत्र हैं, जिनका उपयोग खगोलीय घटनाओं और समय मापन के लिए किया जाता है। इनमें सम्राट यंत्र, जयप्रकाश यंत्र, राम यंत्र प्रमुख हैं।

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