पिंडारियों का दमन किसने किया | पिंडारियों का इतिहास

पिंडारियों का दमन किसने किया था|पिंडारियों का इतिहास|पिंडारियों का दमन : 1824

पिंडारी मराठी भाषा का शब्द है। यह लुटेरों का एक दल था। जिसमें हिंदू व मुस्लिम दोनों शामिल थे। इन्हें मराठा का समर्थन प्राप्त था। मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर ने इन्हें सुनहरा रंग का झंडा प्रदान किया था। मैल्कम ने इन्हें मराठा शिकारियों के साथ शिकारी कुत्ता की संज्ञा दी थी। 

पिंडारियों के दमन के लिए उत्तरी सेना का नेतृत्व लॉर्ड हेस्टिंग्स ने लिया जबकि दक्षिणी सेना का नेतृत्व टॉमस हिसलोप ने किया था। मैंल्कम हिसलोप का सहयोगी था।

पिंडारी सरदार 4 मुख्य (1. चीतू, 2. वासिल मुहम्मद, 3.  आमिर खान, 4. करीम खां) थे।

करीम खान ने मैल्कम के सक्षम समर्पण कर दिया। उसे गोरखपुर में गाैस की जागीर प्रदान की गई थी। 

पिंडारियों पर आधारित फिल्म वीर का वर्ष 2010 में निर्देशक अनिल शर्मा ने बनाया है। इसमें सलमान खान को पिंडारी करीम खान के सहायक पृथ्वी सिंह के पुत्र वीर की भूमिका में अभिनय किया है।

पिंडारियों का दमन किसने किया | पिंडारियों का इतिहास

पिंडारियों का दमन किसने किया |पिंडारियों का इतिहास

पिंडारी विद्रोह 19वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है। पिंडारियों ने देश के विभिन्न हिस्सों में लूटपाट और उत्पात मचाया, जिसे ब्रिटिश सरकार ने समाप्त करने के लिए एक बड़ी सैन्य कार्रवाई की। 1824 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पिंडारियों का दमन कर इस संकट को समाप्त किया। 

भारत में पिंडारियों का दमन लॉर्ड हेस्टिंग्स ने करवाया था. लॉर्ड हेस्टिंग्स, 1813 से 1823 तक बंगाल के गवर्नर जनरल थे।

पिंडारियों का दमन करने के लिए उन्होंने योजना बनाई और 1817 तक पिंडारियों को चंबल नदी के पार खदेड़ दिया. साल 1824 तक पिंडारियों का पूरी तरह से सफ़ाया हो गया था. 

पिंडारी हिंदू, मुस्लिम, अफगान, जाट, और मराठों का मिश्रण थे और वर्ष 1817 में लॉर्ड हेस्टिंग्स की अवधि के दौरान कंपनी द्वारा उनका दमन किया गया था। पिंडारियों को नष्ट करने का श्रेय लॉर्ड हेस्टिंग्स को था।

पिंडारियों के बारे में कुछ और बातें: 

पिंडारियों के बारे में पहली बार मुगलों के महाराष्ट्र पर हमले के समय 1689 में ज़िक्र मिलता है. 

पिंडारियों में हिंदू, मुस्लिम, अफ़गान, जाट, और मराठा समाज के लोग शामिल थे. 

पिंडारियों को वेतन नहीं मिलता था, लेकिन युद्ध के दौरान उन्हें लूटपाट करने की अनुमति थी. 

पिंडारियों ने बंगाल में ब्राह्मणों और उत्तर भारत के राजपूत राज्यों में आम लोगों को लूटा. 

पिंडारियों ने कई बार गांवों को जला दिया था. 

पिंडारियों के प्रमुख नेताओं में चितू, बासिल मुहम्मद, और करीम खां शामिल थे. 

पिंडारियों ने 1812 में मिर्ज़ापुर और शाहाबाद ज़िलों पर हमला किया था.

पिंडारियों ने 1815 में निज़ाम के राज्य और 1816 में उत्तरी सरकार को लूटा था. 

1. पिंडारियों का परिचय

पिंडारियों का उद्भव: पिंडारी एक असंगठित समूह थे, जिनकी उत्पत्ति 17वीं सदी में हुई। वे मुख्यतः मराठा सेना के सहयोगी के रूप में लूटपाट में शामिल रहते थे।

लूटपाट का उद्देश्य: इनका मुख्य काम लूटपाट था, जो राजाओं या साम्राज्यों से स्वतंत्र होते हुए भी खुद को सैनिक मानते थे।

2. पिंडारियों की संरचना

स्वतंत्र गिरोह: पिंडारियों के पास किसी संगठित सेना की तरह नियम नहीं थे, बल्कि वे स्वतंत्र गिरोह के रूप में काम करते थे।

नेताओं की भूमिका: इनके प्रमुख नेता वासुदेव भाऊ, चीतू, और करीम खान थे, जिन्होंने पिंडारियों को संगठित कर बड़ी संख्या में लोगों को लूटपाट में शामिल किया।

3. ब्रिटिश हुकूमत के लिए संकट

ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती: पिंडारियों की अराजकता और लूटपाट ने ब्रिटिश हुकूमत के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न कर दी थी।

राज्यों में अस्थिरता: इनके कारण राज्यों में अस्थिरता फैलने लगी और ब्रिटिश शासन की साख को नुकसान हुआ।

4. पिंडारी युद्ध की शुरुआत

युद्ध का आरंभ: 1817-1818 में ब्रिटिश सरकार ने पिंडारियों को कुचलने का निर्णय लिया और इसके लिए एक बड़े सैन्य अभियान की शुरुआत की।

विलियम हेस्टिंग्स की भूमिका: इस अभियान का नेतृत्व गवर्नर-जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स ने किया। उन्होंने पिंडारियों को चारों ओर से घेरने की रणनीति अपनाई।

5. ब्रिटिश अभियान और दमन (1824)

अभियान की रणनीति: पिंडारियों के खिलाफ कई मोर्चों से हमला किया गया। ब्रिटिश सेना ने बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया और पिंडारियों की घेराबंदी की।

परिणाम: 1824 में पिंडारियों का पूरी तरह दमन कर दिया गया। अधिकांश नेता मारे गए या भागने पर मजबूर हुए। पिंडारियों का संगठन पूरी तरह टूट गया।

6. पिंडारियों का पतन

पिंडारी नेताओं की हार: वासुदेव भाऊ ने आत्मसमर्पण कर दिया, चीतू जंगल में शेर के हमले में मारा गया, और करीम खान ब्रिटिश सेना के हाथों पकड़ा गया।

आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव: पिंडारियों का खात्मा भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश सत्ता की मजबूती का संकेत था। इससे मराठा राज्यों का प्रभाव भी कमजोर हुआ।

7. पिंडारी दमन के ऐतिहासिक परिणाम

ब्रिटिश सत्ता का विस्तार: इस घटना के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी सैन्य शक्ति को और सुदृढ़ किया, जिससे भारत में उनका प्रभाव बढ़ा।

स्थिरता की स्थापना: पिंडारियों के खात्मे के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश शासन को स्थिरता प्राप्त हुई, जो उन्हें व्यापार और प्रशासन में आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करती रही।

8. पिंडारियों का प्रभाव और विरासत

लोकप्रियता में कमी: पिंडारियों के खात्मे के बाद इनका नाम धीरे-धीरे इतिहास के पन्नों में खो गया, लेकिन यह घटना ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार की एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई।

आधुनिक संदर्भ: पिंडारी विद्रोह भारतीय इतिहास में उस समय के सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता का प्रतीक माना जाता है।

पिंडारियों का दमन किसने किया | पिंडारियों का इतिहास

1824 में पिंडारियों का दमन एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने भारत में ब्रिटिश सत्ता की जड़ों को मजबूत किया। इस घटना ने भारतीय राज्यों की स्वतंत्रता और पिंडारियों जैसे अराजक तत्वों के खिलाफ ब्रिटिश सत्ता को स्थिरता प्रदान की। 

यह घटना भारतीय इतिहास में अराजकता के अंत और औपनिवेशिक शासन के सुदृढ़ीकरण का प्रतीक बनी।

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